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________________ ३५६ द्वार २५१-२५२-२५३ २५१ द्वार: पूर्वांग का परिमाण 2284002004050.sssssmachamasan वरिसाणं लक्खेहिं चुलसीसंखेहिं होइ पुव्वंगं । एयं चिय एयगुणं जायइ पुव्वं तयं तु इमं ॥१३८६ ॥ -गाथार्थपूर्वांग का परिमाण-चौरासी लाख वर्ष का एक पूर्वांग होता है। चौरासी लाख को चौरासी लाख से गुणा करने पर पूर्व का परिमाण आता है ।।१३८६ ।। -विवेचन पूर्वांग = पूर्व, संख्या विशेष का अंग अर्थात् निष्पादक । जिसके द्वारा पूर्व का परिमाण निष्पन्न होता है। अर्थात् ८४००००० वर्ष का एक पूर्वांग होता है ।।१३८६ ।। २५२ द्वार : पूर्व का परिमाण पुव्वस्स उ परिमाणं सयरिं खलु वासकोडिलक्खाओ। छप्पन्नं च सहस्सा बोद्धव्वा वासकोडीणं ॥१३८७ ॥ -गाथार्थपूर्व का परिमाण-सत्तर लाख छप्पन हजार करोड़ वर्ष एक पूर्व का परिमाण है।।१३८७ ।। -विवेचन८४ लाख को ८४ लाख से गुणा करने पर एक पूर्व होता है। अर्थात् ७०५६०००००००००० वर्ष का एक पूर्व होता है। (सत्तर लाख, छप्पन हजार करोड़ वर्ष का एक पूर्व होता है ।) ।।१३८७ ।। |२५३ द्वार : लवणशिखा-प्रमाण दसजोयणाण सहसा लवणसिहा चक्कवालओ रुंदा।। सोलस सहस्स उच्चा सहस्समेगं तु ओगाढा ॥१३८८ ॥ -गाथार्थलवणसमुद्र की शिखा-लवणसमुद्र की शिखा समुद्र के मध्य में चक्र की तरह गोलाकार विस्तृत है। उसका विस्तार दस हजार योजन है। वह सोलह हजार योजन ऊँची तथा एक हजार योजन गहरी है ॥१३८८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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