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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३४९ २४७ द्वार: स्त्री-पुरुष का अबीजत्वकाल पणपन्नाए परेणं जोणी पमिलायए महिलियाणं । पणहत्तरीए परओ होइ अबीयओ नरो पायं ॥१३६५ ॥ वाससयाउयमेयं परेण जा होइ पुव्वकोडीओ। तस्सद्धे अभिलाया सव्वाउयवीस भाये य ॥१३६६ ॥ -गाथार्थस्त्री-पुरुष का अबीजत्व काल-पचपन वर्ष की उम्र के पश्चात् स्त्रियों की योनि म्लान हो जाती है। पुरुष पचहत्तर वर्ष के पश्चात् अबीज बन जाता है। पूर्वोक्त कथन सौ वर्ष की आयु की अपेक्षा " से समझना चाहिये। पूर्वक्रोड़ वर्ष के आयु की अपेक्षा अर्ध उम्र तक स्त्री की योनि अम्लान रहती है। पुरुष अपनी सम्पूर्ण आयु के बीसवें भाग में अबीज बनता है ।।१३६५-६६ ।। -विवेचन १०० वर्ष की आयु के अनुसार स्त्री ५५ वर्ष में, पुरुष ७५ वर्ष में अबीज बनता है। अबीज का अर्थ है गर्भोत्पत्ति के अयोग्य। . स्त्री ५५ वर्ष की उम्र तक अन्तराय वाली हो सकती है। अत: ५५ वर्ष तक उसकी योनि अम्लान होने से गर्भधारण योग्य हो सकती है। तत्पश्चात् योनि म्लान हो जाती है, अत: गर्भधारण की क्षमता भी नष्ट हो जाती है। २०० वर्ष की आय वाली स्त्रियों से लेकर पर्व-क्रोड वर्ष की आय की स्त्रियों के लिए यह नियम है कि वे अपनी आयु का अर्ध-भाग पूर्ण होने पर अबीज बनती है। पूवक्रोड़ वर्ष की आयु महाविदेह में है। २०० वर्ष की आयुष्य से लेकर पूर्व क्रोड़ वर्ष की आयु वाले पुरुषों के लिये यह नियम है कि वे अपनी आयु के बीसवें भाग में अबीज बनते हैं। जैसे २०० वर्ष की आयुष्य वाला पुरुष एक सौ साठ वर्ष के बाद अबीज हो जाता है। • पूर्व क्रोड़ वर्ष से अधिक आयु वाली स्त्रियों की प्रसूति एक बार ही होती है। वे अम्लान योनि वाली और सदावस्थित यौवनवती होती हैं ।।१३६५-६६ ॥ २४८ द्वार: शुक्रादि का परिमाण बीयं सुक्कं तह सोणियं च ठाणं तु जणणि गब्भंमि। ओयं तु उवटुंभस्स कारणं तस्स रूवं तु ॥१३६७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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