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________________ प्रवचन - सारोद्धार ६ व्रत ६ काय ५ इन्द्रिय १ लोभनिग्रह १ क्षमा १ भावविशुद्धि १ क्रियाविशुद्धि १ संयमविशुद्धि १३ योगनिरोध १ वेदना सहन १ उपसर्ग सहन ➖➖➖➖ --- अन्यमतानुसार मुनि के २७ गुण- १ क्षमा यह २७ प्रकार का मुनिधर्म-संयमविशेष है 1 -विवेचन- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह व रात्रिभोजन विरति । पृथ्विकाय आदि छः काय के जीवों की सर्वप्रकार से रक्षा करना । पाँचों इन्द्रियों के शुभाशुभ विषय में राग-द्वेष न करते हुए संयमपूर्वक प्रवृत्त होना । वीतरागभाव की साधना करना । क्रोध पर नियन्त्रण रखना । आत्मा का विशुद्ध परिणाम । उपयोगपूर्वक पडिहाण... प्रतिक्रमण आदि क्रिया करना । संयम योग में प्रवृत्ति करते हुए समिति, गुप्ति का पालन करना । संयम पालन में सहायक मन-वचन काया के व्यापार में प्रवृत्त होना तथा अप्रशस्तयोगों का निरोध करना । ५ महाव्रत - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह | ५. इन्द्रियों का संयम । ४ क्रोध, मान, माया व लोभ इन चारों कषायों पर नियन्त्रण रखना । ३ सत्य Jain Education International सर्दी-गर्मी- वायु आदि जन्य वेदना को समभावपूर्वक सहन करना । मरणान्त - उपसर्गों को भी समभावपूर्वक सहन करना तथा उपसर्ग करने वालों को कल्याणमित्र मानते हुए उसके प्रति समता रखना । १ विरागता – आसक्ति का त्याग तथा माया व लोभ का अनुदय होना । ३४३ (i) भावसत्य = आत्मशुद्धि (i) करणसत्य = क्रियाशुद्धि । (i) योगसत्य = मन, वचन व काया की एकरूपता । क्रोध-मान आदि का अभाव अर्थात् किसी भी वस्तु व व्यक्ति के प्रति अप्रीति न होना ! अथवा उदय प्राप्त क्रोध व मान का निरोध करना । ३ मन, वचन, काया की अशुभ प्रवृत्ति का त्याग । ३ ज्ञान, दर्शन व चारित्र की आराधना । १ समभावपूर्वक वेदना सहन करना । १ मारणान्तिक उपसर्ग सहन करना ॥ १३५४-५५ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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