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प्रवचन-सारोद्धार
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द्विविध-त्रिविध आदि ६ में से किसी भी भेद से ग्रहण कर लिया तो इसके ६ भेद हुए। इसी प्रकार द्विविध-द्विविध गृहीत अहिंसाव्रत के साथ यावत् एकविध-एकविध गृहीत अहिंसावत के साथ सत्य के ६ में से किसी भी प्रकार से जडने पर एक द्रिक (अहिंसा व सत्य) के ३६ भेद होते हैं। द्रिक अत: ३६ x १० = ३६० भेद द्विसंयोगी भांगों के ग्रहणकर्ता के भेद से होते हैं। भांगों की अभिव्यक्ति का प्रकार निम्न है
१. स्थूलहिंसा व स्थूल असत्य द्विविध-त्रिविध त्याग करता हूँ। २. स्थूलहिंसा द्विविध त्रिविध तथा स्थूल असत्य द्विविध द्विविध त्याग करता हूँ। ३. स्थूलहिंसा द्विविध-त्रिविध तथा स्थूल असत्य द्विविध एकविध त्याग करता हूँ। ४. स्थूलहिंसा द्विविध-त्रिविध तथा स्थूल असत्य एकविध-त्रिविध त्याग करता हूँ ! ५. स्थूलहिंसा द्विविध-त्रिविध तथा स्थूल असत्य एकविध-द्विविध त्याग करता हूँ। ६. स्थूलहिंसा द्विविध-त्रिविध तथा स्थूल असत्य एकविध-एकविध त्याग करता हूँ।
इस प्रकार हिंसा के साथ अदत्तादान, मैथुन व परिग्रह के भी ६-६ भांगे होने से ६ x ४ = २४ भंग हुए। ये भेद स्थूल हिंसा के द्विविध-त्रिविध त्याग के साथ हुए वैसे द्विविध-द्विविध, द्विविध-एकविध, एकविध-त्रिविध, एकविध-द्विविध, एकविध-त्रिविध के साथ होने से २४ x ६ = १४४ भांगे हुए। ये भांगे हिंसा के साथ क्रमश: असत्य, अदत्तादान, मैथुन व परिग्रह के संयोग से हुए वैसे असत्य के साथ क्रमश: अदत्तादान, मैथुन व परिग्रह के संयोग से भी ६-६ भांगे होने से कुल ६ x ३ = १८ भंग हुए। ये १८ भांगे मृषावाद के द्विविध-त्रिविध त्याग के साथ हुए वैसे ही १८-१८ भांगे क्रमश: द्विविध-द्विविध, द्विविध-एकविध, एकविध-त्रिविध, एकविध-द्विविध, एकविध-एकविध के साथ होने से १८ x ६ = १०८ कुल भांगे असत्य के द्विक से हुए।
स्थूल असत्य की तरह स्थूल अदत्तादान के द्विविध त्रिविध भेद के साथ क्रमश: मैथुन व परिग्रह के संयोग से १२ भांगे हुए। इसी प्रकार अदत्तादान के शेष द्विविध-द्विविध आदि भांगों के साथ भी ६-६ भांगे होने से कुल १२ x ६ = ७२ भांगे हुए।
इसी तरह स्थूल मैथुन के द्विविध-त्रिविध भेद के साथ परिग्रह के संयोग से ६ भांगे हुए। वैसे ही स्थूल मैथुन के द्विविध-द्विविध आदि शेष भांगों के साथ भी ६-६ भांगे होने से कुल ६ x ६ = ३६ भांगे हुए।
त्रिसंयोगी २,१६० भांगे होते हैं। जैसे द्विविध-त्रिविध स्थूलहिंसा व मृषा के साथ अदत्तादान द्विविध-त्रिविध आदि ६ प्रकार से जुड़ता है, वैसे द्विविध-त्रिविध हिंसा व द्विविध-द्विविध मृषा के साथ भी अदत्तादान ६ प्रकार से जुड़ता है। इस तरह द्विविध-एकविध, एकविध-एकविध, एकविध-द्विविध और एकविध-त्रिविध मृषा के साथ भी ६ प्रकार से जुड़ता है, अत: द्विविध-त्रिविध हिंसा व षड्विध मृषा के प्रत्येक भेद के साथ अदत्तादान ६-६ प्रकार से जुड़ने से हिंसा के प्रथमभंग द्वित्रि. के ६x६ = ३६ भेद होते हैं। इस प्रकार शेष भंगों के भी ३६-३६ भेद होने से ३६ x ६ = २१६ भांगे हुए। त्रिसंयोगी १० भांगे होने से २१६ को १० से गुणा करने पर २,१६० पाँचव्रतों के त्रिकसंयोग से सम्बन्धित भांगे बनते हैं। ___चतु:संयोग में १२९६ भंग है। द्वि. त्रि. हिंसा-मृषा, अदत्तादान व मैथुन यह चतु:संयोग का प्रथम भंग है। यहाँ द्वित्रि. हिंसा, मृषा व अदत्तादान के साथ मैथुन ६ प्रकार से जुड़ता है। ६ प्रकारों से युक्त मैथुन सहित अदत्तादान पुन: द्वि. त्रि. हिंसा, मृषा के साथ जुड़ता है, इससे ६ x ६ = ३६ भंग हुए।
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