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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३३१ (viii) एकविध-द्विविध - इसके उत्तर भेद ९ हैं। १...से...३ - स्थूलहिंसादि सावध पाप न करना, मन-वचन से..मन-काया से..वचन-काया से। ४...से...६ - स्थूलहिंसादि सावध पाप न कराना, मन-वचन से...मन-काया से..वचन-काया से। ७...से...९ - स्थूलहिंसादि सावध पाप का अनुमोदन न करना, मन-वचन से...मन-काया से...वचन-काया से । (ix) एकविध-एकविध -- इसके भी उत्तर भेद ९ हैं। १...से...३ - स्थूलहिंसादि सावध पाप न करना, मन से, वचन से, काया से। ४...से...६ - स्थूलहिंसादि सावध पाप न कराना, मन से, वचनसे, काया से । ७...से...९ - स्थूलहिंसादि सावध पाप का अनुमोदन न करना, मन से, वचन से, काया से। इस प्रकार मूल ९ भेद के उत्तरभेद कुल = ४९ होते हैं। स्थापना योग करण भंग प्रश्न-वचन और काया का करना, कराना व अनुमोदन करना प्रत्यक्ष दिखाई देता है परन्तु मन के तीनों ही दिखाई नहीं देते अत: उन्हें कैसे समझा जाये? उत्तर-मानसिक विकल्प के बिना वचन और काया सम्बन्धी करण-करावण व अनुमोदन घटित नहीं हो सकता। मन में विकल्प उठने के पश्चात् ही काया सम्बन्धी व वचन सम्बन्धी व्यापार होता है अत: मानसिक करण-करावण व अनुमोदन प्रत्यक्षगम्य है। तथा 'मैं सावद्यकार्य करता हूँ' ऐसा चिंतन करना मानसिक करण है। 'अमुक व्यक्ति सावध कार्य करे' ऐसा चिंतन करना तथा हाव-भाव चेष्टा से समझकर उस व्यक्ति द्वारा तदनसार करना यह मानसिक करावण है। अन्य द्वारा सावध कार्य करने पर यह चिंतन करना कि 'इसने अच्छा किया' यह मानसिक अनुमोदन है। • पूर्वोक्त ४९ भेद अन्य प्रकार से भी किये जाते हैं। जैसे१ से ३ स्थूलहिंसादि पाप न करना, मन से या वचन से या काया से। ४ स्थूलहिंसादि पाप न करना मन-वचन से। ५ स्थूलहिंसादि पाप न करना मन-काया से । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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