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द्वार २३६
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६ स्थूलहिंसादि पाप न करना वचन-काया से।
७ स्थूलहिंसादि पाप न करना मन-वचन व काया से ।
पूर्वोक्त ७ भेद न करने के साथ हुए। इसी प्रकार क्रमश: न कराने,अनुमोदन न करने, न करने-न कराने, न करने-न अनुमोदन करने, न कराने-न अनुमोदन करने तथा न करने, न कराने-न अनुमोदन करने . के साथ भी ७-७ भेद होने से कुल ७ x ७ = ४९ भेद होते हैं।
१४७ भेद-श्रावकव्रत के १४७ भेद भी होते हैं। पूर्वोक्त ४९ भेदों को भूत, भविष्य और वर्तमान इन तीन काल से गुणा करने पर ४९ x ३ = १४७ भेद श्रावकव्रत के होते हैं।
• प्रत्याख्यान त्रैकालिक होता है। अतीत पाप का निन्दा द्वारा, वर्तमान पाप का संवर द्वारा तथा
भावी पाप का त्याग द्वारा प्रत्याख्यान होता है। ४९ भेदों से अतीत में किये गये पाप की निन्दा करके वर्तमान में होने वाले पाप का संवर करके तथा भविष्य में पाप न करने की
प्रतिज्ञा करके आत्मा १४७ भेद से यथाशक्ति व्रत ग्रहण कर सकता है। ७३५ भेद-पाँचों व्रत १४७ भेद से ग्रहण किये जाते हैं अत: गणा करने पर १४७
१४७ x ५ = ७३५ भेद होते हैं तथापि मूलभेद १४७ ही हैं अत: सूत्र में १४७ ही बताये हैं।
__ जो आत्मा प्रत्याख्यान के १४७ भेदों को अच्छी तरह से जानता है वही प्रत्याख्यान-कुशल है। देवकुलिका
प्रत्येक व्रत के मूल ६, ९, २१ तथा ४९ भेद हैं। इनसे निष्पन्न उत्तर भंग समूह के प्रतिपादक अंकों को पट्ट पर लिखा जाये तो देवकुलिका का आकार बनता है। 'देवकुलिका' पारिभाषिक शब्द है। जिस संख्या को लिखने पर देवालय A जैसी आकृति बनती है उसे देवकुलिका समझना।
एकवत की अपेक्षा मूलभंग ६ हैं तो उत्तरभंग = २१ हैं।
एकव्रत की अपेक्षा मूलभंग ९ हैं तो उत्तरभंग = ४९ हैं। प्रत्येक भंग (६, ९, २१, ४९) की देवकुलिका में ३-३ राशियाँ होती हैं। १ गुण्यराशि (जिसको गुणा किया जाये वह संख्या) २. गुणकराशि (जिससे गुणा किया जाये वह संख्या) ३. आगतराशि अर्थात् गुणनफल। व्रत १२ हैं। मूल भंग ६, ९, २१ व ४९ से एक-एक व्रत की भिन्न-भिन्न संख्यावाली देवकुलिकायें बनती हैं। सर्वप्रथम १२ व्रत की ६ मूल भंगों वाली देवकुलिका की स्थापना बताते हैं।
प्रथमव्रत के ६ भांगे हैं, उन्हें (६ को) ७ से गुणा करके ६ जोड़ने से जो संख्या आती है वह द्वितीयव्रत की भंग संख्या है। द्वितीय व्रत की भंग संख्या को ७ से गुणा करके ६ जोड़ने पर तृतीयव्रत की भंग संख्या आ जाती है। इस प्रकार जितने व्रत की भंगसंख्या लानी हो, पूर्ववत संख्या को ७ से गुणा करके ६ जोड़ने पर आ जाती है। जैसे ६ भंगों वाली १२ व्रत की उत्तरभंग संख्या लाने के लिए ११ बार उत्तरोत्तर ७ से गुणा करे गुणनफल में ६ जोड़ देना चाहिये। प्रथमवत के तो ६ भांगे हैं ही। अत: ११ बार ही गुणाकार होता है।
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