________________
३२२
द्वार २३४-२३५
१५.५
......
0558500
२. परलोकभय–विजातीय से भय होना । जैसे, किसी मनुष्य को तिर्यंच या देव से भय लगना परलोकभय है।
३. आदानभय–किसी से कुछ लेना आदान है। मेरे से कोई कुछ ले लेगा, इस प्रकार छीने जाने का भय आदानभय है। जैसे, चोर मेरा कुछ चुरा लेंगे, ऐसा भय लगना।
४. अकस्मात्भय–बिना किसी बाह्यनिमित्त के भय होना। जैसे कईयों को रात में बन्द कमरे में सोते-सोते ही डर लगता है।
५. आजीविकाभय-जीवन निर्वाह के लिये चिन्ता करना। जैसे-अकाल की संभावना होने पर चिन्ता करना कि मैं निर्धन हूँ....अकाल पड़ने पर मेरी क्या दशा होगी? मैं कैसे जीऊँगा?...इत्यादि ।
६. मरणभय ज्योतिषी आदि से अपनी मृत्यु निकट जानकर डरना । ७. अश्लोकभय—अकार्य करते हुए लोकनिन्दा से डरना ।।१३२० ।।
|२३५ द्वार :
अप्रशस्तभाषा
हीलिय खिसिय फरुसा अलिआ तह गारहत्थिया भासा। छट्ठी पुण उवसंताहिगरणउल्लाससंजणणी ॥१३२१ ॥
-गाथार्थछ: अप्रशस्तभाषा-१. हीलिता २. खिसिता ३. परुषा ४. अलीका ५. गार्हस्थिका तथा ' ६. उपशांत अधिकरण उल्लास-संजननी-ये छः अप्रशस्त भाषा है ॥१३२१ ।।
-विवेचनअप्रशस्त = कर्मबंध के हेतुभूत, भाषा = वचन । (i) हीलिता -तिरस्कारपूर्वक बोलना, हे वाचक ! हे ज्येष्ठाय....इत्यादि । (ii) खिसिता -निन्दा करना । किसी की हलकी बात सब के सम्मुख प्रकट करना। (iii) परुषा -कठोर वचन बोलना....यह दुष्ट है...बदमाश है...इत्यादि । (iv) अलीका -झूठ बोलना। किसी के द्वारा पूछने पर कि तुम दिन में जाते हो? कहना कि
नहीं जाता हूँ। (v) गार्हस्थी –साधु होकर गृहस्थ की भाषा में बोलना। मेरा पुत्र...मेरा भाई..मेरे माता-पिता
इत्यादि। (vi) उपशान्ताधिकरणोल्लाससंजननी-उपशान्त = शांत हुए, अधिकरण = कलह को, उल्लास = पुन:, संजननी = पैदा करने वाली भाषा अर्थात् शान्त हुए कलह को
प्रेरित कर पुन: पैदा करने वाली भाषा ॥१३२१ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org