SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन-सारोद्धार ३२१ 486500-520206500ws चार समय लगते हैं। विदिशा से दिशा में उत्पन्न होने वाला जीव प्रथम समय में विदिशा से दिशा में आता है...द्वितीय समय में त्रसनाड़ी में प्रवेश करता है...तृतीय समय में ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर जाता है और चतुर्थ समय में बाहर उत्पन्न होता है। दिशा से विदिशा में उत्पन्न होने वाला जीव प्रथम समय में त्रसनाड़ी में प्रवेश करता है। द्वितीय समय में ऊपर से नीचे अथवा नीचे से ऊपर जाता है। तृतीय समय में त्रसनाड़ी से बाहर निकलता है और चतुर्थ समय में विदिशा में उत्पन्न होता है। यहाँ प्रथम और अंतिम समय में जीव आहारक तथा मध्यवर्ती दो समय में अनाहारक होता है। (द) चतुर्-वक्रा—इसमें पाँच समय लगते हैं। जब कोई जीव त्रस नाड़ी से बाहर विदिशा में से निकलकर विदिशा में ही उत्पन्न होने वाला होता है, तो उसकी चतुर् वक्रा गति होती है। प्रथम समय में वह त्रस-नाड़ी से बाहर विदिशा में से दिशा में आता है। दूसरे समय में त्रस-नाड़ी में प्रवेश करता है। तीसरे समय में ऊपर अथवा नीचे आता है। चौथे समय में त्रस-नाड़ी से बाहर निकलता है और पाँचवें समय में विदिशा में स्थित अपने उत्पत्ति-स्थान में पहुँचता है। यहाँ भी प्रथम और अंतिम समय में जीव आहारक और मध्यवर्ती तीनों समय में अनाहारक होता है। - अष्टसमय परिमाण वाले, केवलिसमुद्घात को करते समय, तीसरे, चौथे व पाँचवें समय में जीव मात्र कार्मणकाय योगी होने से अनाहारी होता है। शैलेशी अवस्था में, अयोगी आत्मा ५ ह्रस्वाक्षर उच्चारण काल पर्यंत अनाहारी होते हैं तथा सिद्धभगवंत सादि अनंत काल तक अनाहारी ही है ॥१३१९ ॥ २३४ द्वार: भयस्थान 85856065804 इह परलोयाऽऽयाणा-मकम्ह आजीव मरण मसिलोए। सत्त भयट्ठाणाइं इमाइं सिद्धंतभणियाइं ॥१३२० ॥ -गाथार्थभयस्थान सात-१. इहलोक भय २. परलोक भय ३. आदान भय ४. अकस्मात् भय ५. आजीविका भय ६. मरण भय और ७. अश्लोक भय-ये सात भयस्थान आगम में कहे गये हैं ।।१३२०॥ -विवेचन भय - भय मोहनीय कर्म से जन्य आत्मा का परिणाम विशेष । स्थान - भय के कारण, निमित्त या आश्रय । भय स्थान सात हैं १. इहलोकभय-सजातीय से भय होना। जैसे किसी को अपने सजातीय मनुष्य से भय लगना इहलोकभय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy