________________
प्रवचन-सारोद्धार
३२३
२३६ द्वार:
अणुव्रत-भंग भेद (भांगे) -
दुविहा अट्ठविहा वा बत्तीसविहा य सत्तपणतीसा। सोलस य सहस्स भवे अट्ठ सयट्ठोत्तरा वइणो ॥१३२२ ॥ दुविहा विरयाविरया दुविहं तिविहाइणट्ठहा हुंति । वयमेगेगं छव्विह गुणियं दुगमिलिय बत्तीसं ॥१३२३ ॥ तिन्नि तिया तिन्नि दुया, तिन्निक्केक्का य हुँति जोएसु । ति दु एक्कं ति दु एक्कं, ति दु एक्कं चेव करणाई ॥१३२४ ॥ मणवयकाइयजोगे करणे कारावणे अणुमईए। एक्कग-द्गतिगजोगे सत्ता सत्तेव गुणवन्ना ॥१३२५ ॥ पढमेक्को तिन्नि तिया दोन्नि नवा तिन्नि दो नवा चेव। कालतिगेण य गुणिया सीयालं होइ भंगसयं ॥१३२६ ॥ पंचाणुव्वयगुणियं सीयालसयं तु नवरि जाणाहि। सत्त सया पणतीसा सावयवयगहणकालंमि ॥१३२७ ॥ सीयालं भंगसयं जस्स विसुद्धीए होइ उवलद्धं । सो खलु पच्चक्खाणे कुसलो सेसा अकुसला उ ॥१३२८ ॥ दुविहतिविहाइ छब्विह तेसिं भेया कमेणिमे हुंति । पढमेक्को दुन्नि तिया दुगेग दो छक्क इगवीसं ॥१३२९ ॥ एगवए छब्भंगा निद्दिट्ठा सावयाण जे सुत्ते । ते च्चिय पयवुड्डीए सत्तगुणा छज्जुया कमसो ॥१३३० ॥ इगवीसं खलु भंगा निद्दिट्ठा सावयाण जे सुत्ते । ते च्चिय बावीसगुणा इगवीसं पक्खिवेयव्वा ॥१३३१ ॥ एगवए नव भंगा निद्दिठ्ठा सावयाण जे सुत्ते। ते च्चिय दसगुण काउं नव पक्खेवंमि कायव्वा ॥१३३२ ॥ इगवन् खलु भंगा निद्दिट्ठा सावयाण जे सुत्ते । ते च्चिय पन्नासगुणा, गुणवन्नं पक्खिवेयव्वा ॥१३३३ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org