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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३०३ सपा १४ सिद्ध भगवान अष्टकर्म से मुक्त, अनंत चतुष्टय मक्षि के स्यामी। समय-सादि-अनंता । १४.तीनों योगों से मुक्त, वीतराग सर्वज्ञ भगवान। सयोगी समय ५ हस्ताक्षर उच्चारण काल। केवली १३. योगयुक्त, वीतराग सर्वज्ञ भगवान। समय-अन्तर्मुहूर्त से देशोन पूर्वक्रोड वर्ष । (सयोगी केवली १३ १२. क्षीणकषाय छद्मस्थ वीतराग। मोह का पूर्णक्षय, प्रातिभ ज्ञान समय-अन्तर्मुहूर्त। ૧ર (क्षीण मो। . ११. उपशांत छद्मरथ वीतराग गुणस्थान । समय - १ समय से अन्तर्मुहूर्त। पश्रचात् अवश्य पतन। उपशांत मोह १०. सुक्ष्मलोभ की किट्टी का वेदन। समय १ समय से अन्तर्मुहूर्त। 1 १०V सक्ष्म स परागु ६. मोहकर्म का क्षय या उपशम समय-१ अन्तर्मुहत्त। अनिवृति करण श्रेणी के गुणस्थान अपूर्व करण ८. मोहकर्म का १ स्थितिघात २ रसघात गुणश्रेणि ४ गुणसंक्रम ५ अपूर्व-स्थितिबंध। समय-१ अंतर्मुहूर्त। ७. प्रमाद रहित संयम। समय-१ अन्तमुहूर्त काला अप्रमत्त संयत ६. प्रमाद सहित संयम। समय-१ अन्तर्मुहूर्त से देशोन पूर्व क्रोड़ वर्ष। विरति प्रगत मर्य । 9A - अतिगाढ़ मिथ्यात्त्व। स्थान-सूक्ष्म निगोद अव्यवहारराशि। ८ रुचक प्रदेश अनावृत होते हैं। १B - व्यवहारराशि में प्रवेश। महाभयानक मिथ्यात्त्व । १८ - द्विबंधक-सकृबंधक। अत्यंत भवाभिनन्दी। १०- चरमावर्तकाल में प्रवेश। अपनबंधक भाव। मार्गपतित। सद्धर्म प्राप्ति की योग्यता। लक्षण - पाप में मंदप्रवृत्ति, उचित सेवन, अर्थ में न्याय, काम में सदाचार, मोक्षरुचि। १E - मार्गानुसारी जीवन । न्याय संपन्न विभव आदि गुणों की प्राप्ति। ५. सम्यक्त्व सहित. आंशिक विरति। (दशपिरति ४. जिनधर्म के प्रति श्रद्धा, सुखमय संसार के प्रति घृणा। जिनभक्ति, स्वधर्मी भक्ति। जिनवाणी श्रवण का अनुराग। समय-१(सम्यक्त्व अन्तर्मुहूर्त से ६६ सागरोपमा . ३. न धर्म के प्रति राग, न संसार के प्रति / गिक्ष द्वेष। समय-अन्तर्मुहूर्त। २. उपशम सम्यक्त्व का वमन करते समय। समय-६ आवलिका जघन्य १ समय - - - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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