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________________ २९० द्वार २२१-२२२ होते हैं। औदयिक भाव से गति आदि, पारिणामिक भाव से जीवत्वादि, क्षायोपशमिक भाव से इन्द्रियादि तथा क्षायिक या औपशमिक भाव से सम्यक्त्व मिलता है। नौवें-दसवें गुणस्थान में-पूर्ववत् चार भाव होते हैं। ___ ग्यारहवें गुणस्थान में-पूर्ववत् चार अथवा पांच भाव होते हैं। सम्यक्त्व व चारित्र दोनों ही जिसके औपशमिक हैं उस जीव की अपेक्षा औदयिक, पारिणामिक क्षायोपशमिक व औपशमिक सहित चार भाव होते हैं परन्तु क्षायिक सम्यक्त्वी उपशमश्रेणि करने वाले जीव की अपेक्षा पांच भाव होते हैं, क्योंकि उसका सम्यक्त्व क्षायिक व चारित्र औपशमिक होता है। १२वें गुणस्थान में-औदयिक, पारिणामिक, क्षायोपशमिक व क्षायिक चार भाव होते हैं। प्रथम तीन भाव से क्रमश: गति, जीवत्वादि व इन्द्रियादि मिलती है तथा सम्यक्त्व व चारित्र क्षायिक भाव से मिलता है। तेरहवें गुणस्थान में-औदयिक, पारिणामिक तथा क्षायिक तीन भाव होते हैं। जिनसे क्रमश: गति, जीवत्वादि तथा सम्यक्त्व, चारित्र आदि मिलते हैं। गुणस्थानों में भावों की पूर्वोक्त घटना एक जीव की अपेक्षा से समझना। सर्व जीवों की अपेक्षा से तो संभवित सभी भाव घटित होते हैं ॥१२९०-९९ ।। |२२२ द्वार : जीव-भेद 260000088086868883 इह सुहुमबायरेगिंदियबितिचउ असन्नि सन्नि पंचिंदी। पज्जत्तापज्जत्ता कमेण चउदस जियट्ठाणा ॥१३०० ॥ -गाथार्थजीव के चौदह प्रकार-१. सूक्ष्म एकेन्द्रिय २. बादर एकेन्द्रिय ३. द्वीन्द्रिय ४. त्रीन्द्रिय ५. चतुरिन्द्रिय ६. संज्ञी पञ्चेन्द्रिय ७. असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय। इन जीवों के क्रमश: पर्याप्ता और अपर्याप्ता मिलाकर कुल चौदह जीव भेद होते हैं ॥१३०० ।। -विवेचन जीव के १४ भेद हैं। ये जीवस्थान भी कहलाते हैं। जीवस्थान अर्थात् जहाँ कर्म-परवश जीव आयुपर्यन्त ठहरते हैं। जीव के चौदह भेद१. सूक्ष्म एकेन्द्रिय ४. त्रीन्द्रिय २. बादर एकेन्द्रिय ५. चतुरिन्द्रिय द्वीन्द्रिय कुलभेद संज्ञी पंचेन्द्रिय असंज्ञी पंचेन्द्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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