SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन-सारोद्धार २८९ औपशमिक = चारित्र, क्षायिक = सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक = इन्द्रियादि, औदयिक = मनुष्यत्वादि, पारिणामिक = जीवत्वादि । (१ भेद) पूर्वोक्त छ: भांगों के गति तथा जीव के भेद से कुल मिलाकर अवान्तर पन्द्रह भांगे होते हैं। कर्म में भाव१. औपशमिक भाव - एक मोहनीय कर्म का। (उपशम से सर्वत: अर्थात् विपाकोदय व प्रदेशोदय दोनों का उपशम समझना अन्यथा देशत: उपशम तो सभी कर्मों का होता है।) २. क्षायिक भाव - आठ कर्म का। मोहनीय का क्षय = दसवें गुणस्थान के अन्त में। चार अघाती का क्षय = चौदहवें गुणस्थान के अंत में। ३. क्षायोपशमिक भाव - चार घाती कर्मों का। केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण को छोड़कर। इनका क्षयोपशम नहीं होता। क्षय ही होता है । ४. औदयिक भाव - आठ कर्मों का। ५. पारिणामिक भाव . - आठ कर्मों का।। पारिणामिक = कर्म परमाणुओं का जीव-प्रदेशों के साथ एकमेक होना अथवा विशिष्ट द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से तथाविध संक्रमादि के रूप में परिणत होना कर्मों का पारिणामिक भाव है। उपसंहार• ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय क्षायिक, क्षायोपशमिक औदयिक और पारिणामिक = चार भाव • मोहनीय में पाँचों भाव • नाम, गोत्र, वेदनीय और आयुष्य क्षायिक, औदयिक और कर्म में पारिणामिक = तीन भाव गुणस्थानक में भाव पहिले से तीसरे गुणस्थान में-औदयिक, पारिणामिक व क्षायोपशमिक तीन भाव होते हैं। औदयिक भाव से यथायोग्य गति आदि, पारिणामिक भाव से जीवत्वादि तथा क्षायोपशमिक भाव से इन्द्रियादि मिलती है। ___चौथे से सातवें गुणस्थान में पूर्वोक्त तीन अथवा क्षायिक या औपशमिक सहित चार भाव होते हैं। तीन भाव क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि जीव की अपेक्षा से होते हैं क्योंकि उसका सम्यक्त्व भी क्षायोपशमिक ही है। परन्तु क्षायिक सम्यग्दृष्टि या उपशम सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा चार भाव होते हैं क्योंकि उनका सम्यक्त्व क्रमश: क्षायिक भाव या औपशमिक भाव जन्य है। आठवें गुणस्थान में-औदयिक, पारिणामिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक या औपशमिक चार भाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy