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प्रवचन-सारोद्धार
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कर्मरूप अवस्थानकर्म उत्कृष्ट
जघन्य १. ज्ञानावरणीय ३० कोड़ा
अन्तर्मुहूर्त २. दर्शनावरणीय कोड़ी
अन्तर्मुहूर्त ३. वेदनीय सागरो
१२ मुहूर्त सकषायी के, अकषायी की अपेक्षा २ समय। प्रथम समय बंध, द्वितीय समय में उदय और
तृतीय समय में निर्जरा। ४. अन्तराय
३० कोड़ा कोड़ी सागर. अन्तर्मुहूर्त ५. मोहनीय
७० कोड़ा कोड़ी सागर. अन्तर्मुहूर्त ६. आयु ३३ सागर
अन्तर्मुहूर्त ७. नाम
२० कोड़ा कोड़ी सागर. आठ मुहूर्त ८. गोत्र
२० कोड़ा कोड़ी सागर अन्तमुहूर्त • अकषायी आत्मा प्रथम समय में वेदनीय का बंध करता है तथा द्वितीय समय में भोगकर
क्षय कर देता है। कषायरहित आत्मा अधिक बंध नहीं करता। अनुभव योग्य स्थितिकर्म उत्कृष्ट
जघन्य १. ज्ञानावरणीय । ३००० वर्ष
अन्तर्मुहूर्त न्यून अन्तर्मुहूर्त ।* न्यून
अन्तर्मुहूर्त के अनेक भेद हैं। २. दर्शनावरणीय ३. वेदनीय कोड़ा कोड़ी
अन्तर्मुहूर्त न्यून १२ मुहूर्त* ४. अन्तराय सागर
अन्तर्मुहूर्त न्यून अन्तर्मुहूर्त
३०
५. मोहनीय
७००० वर्ष न्यून ७० अन्तर्मुहूर्त न्यून
कोड़ा-कोड़ी सागर. ६. आयु ३३ सागर
अन्तर्मुहूर्त ७ नाम
२००० वर्ष न्यून अन्तर्मुहूर्त ८. गोत्र
२० कोड़ा कोड़ी सागर. न्यून आठ मुहूर्त (i) दो समय की (१२-१३वें गुणस्थान में) प्रथम समय में बंध, दूसरे समय में उदय व तीसरे समय में निर्जरा।
(ii) १२ मुहूर्त की (सकषायी को) अबाधा-काल-बँधा हुआ कर्म तुरन्त उदय में नहीं आता, किन्तु निश्चित समय बीतने के बाद
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