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________________ द्वार २१८ २८० पर ही उदय में आता है। जितने समय तक कर्म उदय में नहीं आता, वह समय अबाधा-काल कहलाता है। अबाधा-काल का यह नियम है कि एक कोड़ाकोड़ी की स्थिति के पीछे सौ वर्ष का अबाधा-काल होता है, अर्थात् एक कोड़ाकोड़ी की स्थिति वाला कर्म बँधने के पश्चात् सौ-वर्ष के बाद ही उदय में आता है। जघन्य स्थिति में अन्तर्मुहूर्त का अबाधा-काल होता है। जघन्य स्थिति पर पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक होते ही एक समय अधिक अन्तर्मुहूर्त का अबाधा-काल होता है। इस प्रकार जघन्य स्थिति पर जितने अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग बढ़ेंगे, उतने समय, अबाधा-काल के अन्तर्मुहूर्त पर बढ़ जायेंगे। अर्थात् जघन्य स्थिति के ऊपर पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले कर्म का अबाधा-काल समयाधिक अन्तर्मुहूर्त होता है। इस प्रकार बढ़ते-बढ़ते एक कोड़ा कोड़ी की स्थिति वाले कर्म का अबाधा-काल सौ वर्ष का हो जाता है। *वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति दो प्रकार की है*अबाधाकाल का अन्तर्मुहूर्त उदयकाल के अन्तर्मुहूर्त से अतिलघु है। कर्म उत्कृष्ट जघन्य १. ज्ञानावरणीय ३००० २. दर्शनावरणीय वर्ष का ३. वेदनीय अबाधा ४. अन्तराय काल ५. मोहनीय ७००० ६. आयु पूर्व क्रोड़ वर्ष का तीसरा भाग ७. नाम २००० वर्ष का बाधा ८. गोत्र २००० वर्ष का काल निषेक = अबाधा-काल बीतने के बाद कर्म को भोगने के लिये की गई क्रमिक दलिकों की रचना। कर्मों के सभी दलिक एक ही साथ नहीं भोगे जाते । अबाधा काल छोड़कर जिस-कर्म की जितनी स्थिति होती है, उतने समय में ही वह कर्म भोगा जाता है। अत: बंधे हुए कर्म के दलिकों की क्रमश: रचना होती है। प्रथम समय में सर्वाधिक दलिक, द्वितीय समय में अपेक्षाकृत अल्प, तृतीय समय में और अल्प, इस प्रकार स्थिति-बंध के अंतिम समय पर्यन्त उत्तरोत्तर हीन, हीनतर दलिकों की रचना होती है और रचना के अनुसार ही प्रतिसमय दलिक भोगे जाते हैं। दलिकों की यह रचना निषेक कहलाती पूर्व क्रोड़ की आयुष्य वाला जीव अपनी आयु के तीसरे भाग में अनुत्तर विमान के योग्य ३३ सागर का उत्कृष्ट-आयु बाँधता है अत: उसकी अपेक्षा से पूर्वक्रोड़ के तीसरे भाग का अबाधाकाल घटता है। आयु तो जितने समय का बँधा है उतना पूरा भोगा जाता है ॥१२८०-८२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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