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________________ प्रवचन-सारोद्धार २६७ अन्यमतानुसार सादि की जगह 'साची संस्थान' ऐसा नाम है। साची का अर्थ है शाल्मलीवृक्ष । जिस प्रकार शाल्मली वृक्ष के स्कंध और कांड अतिपुष्ट होते हैं, किन्तु उसका ऊपरी भाग इतना विशाल नहीं होता। उसी प्रकार जिस शरीर का अधो भाग तो परिपूर्ण हो, किन्तु ऊपर का भाग हीन हो, उसे 'साची संस्थान' नामकर्म कहते हैं। (iv) वामन संस्थान—जिस शरीर के हाथ, पांव, सिर, गर्दन आदि अवयव प्रमाणोपेत व लक्षणयुक्त हों, किन्तु छाती, पीठ, पेट हीन हो, उसे वामन संस्थान कहते हैं। (v) कुब्ज संस्थान—जिस शरीर में हाथ, पैर आदि अवयव प्रमाणहीन हो और छाती, पेट आदि पूर्ण हो, उसे कुब्ज संस्थान कहते हैं। अन्यमतानुसार वामन के लक्षण वाला कुब्ज और कुब्ज के लक्षण वाला वामन है। (vi) हुंडकसंस्थान—जिस शरीर के सभी अवयव लक्षण एवं प्रमाण से शून्य हो। (९.) वर्ण नामकर्म–शरीर के रंग को वर्ण कहते हैं। जिस कर्म के उदय से शरीर आदि पुद्गल में भिन्न-भिन्न रंगों की प्राप्ति हो। इसके पाँच भेद हैं—काजल की तरह काला, हल्दी की तरह पीला, रायण के पत्ते की तरह नीला, हिंगल की तरह लाल तथा खडिया की तरह श्वेत । (१०.) गंध नाम कर्म—जिस कर्म के उदय से शरीर में गंध की प्राप्ति हो। इसके दो भेद हैं-(i) सुगन्ध चन्दन की तरह और (ii) दुर्गन्ध लहसुन आदि की तरह। (११.) रस नामकर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर में भिन्न-भिन्न रसों की प्राप्ति होती है। इसके ५ भेद हैं (i) तिक्त रस-जिस नाम कर्म के उदय से जीव के शरीर का रस नीम जैसा कड़वा हो। (ii) कटुरस-जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर-रस सोंठ या काली मिर्च जैसा चटपटा हो, वह कटुरस नामकर्म है। यहाँ 'कटु' का अर्थ नीम आदि के रस की तरह कड़वा नहीं पर सूंठ आदि की तरह तीखा रस है। जिन कर्मों का परिणाम अतिदारुण है उनके लिये शास्त्र में 'कटु परिणाम' शब्द का प्रयोग किया है। अत: स्पष्ट है कि शास्त्रों में तीखे के अर्थ में कटुशब्द का प्रयोग है। लोक में नीम कड़वा माना जाता है पर शास्त्र में तिक्त कहा गया है। (iii) कषाय रस-जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर का रस अपक्व कबीठ, बहेडा आदि के जैसा कषैला-तरा हो, वह कषायरस नामकर्म है। (iv) आम्ल रस-जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर का रस आंवला या इमली जैसा खट्टा हो, वह आम्ल रस नामकर्म है। (v) मधुर रस-जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर का रस गन्ने जैसा मीठा हो, वह मधुर रस नामकर्म है। (१२.) स्पर्श नामकर्म–स्पर्शनेन्द्रिय के द्वारा ग्रहण करने योग्य विषय। इसके आठ भेद हैं (i) कर्कशस्पर्श नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर पत्थर या गाय की जीभ जैसा खुरदरा हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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