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नय यरो हि केवल दंसण आवरणयं भवे चउहा । निद्दा पयलाहि छहा निद्दाइदुरुत्त थीणद्धी ॥ १२५४ ॥ एवमिह दंसणावरणमेयमावर दरिसणं जीवे । सायमसायं च दुहा वेयणियं सुहदुहनिमित्तं ॥ १२५५ ॥ कोहो माणो माया लोभोऽणताणुबंधिणो चउरो । एवमपच्चक्खाणा पच्चक्खाणा य संजलणा ॥१२५६ ॥ सोलम इमे कसाया एसो नवनोकसायसंदोहो । इत्थी - पुरिस - नपुंसकरूवं वेयत्तयं तंमि ॥१२५७ ॥ हास-रई-अरई-भय-सोग-दुगंछत्ति हास - छक्कमिमं । दरिणतिगं तु मिच्छत्त- मीस - सम्मत्त - जोएणं ॥ १२५८ ॥ इय मोह अट्ठवीसा नारयतिरिनरसुराउय चउक्कं । गोयं नीयं उच्चं च अंतरायं तु पंचविहं ॥ १२५९ ॥ दाउ न लहइ लाहो न होइ पावइ न भोगपरिभोगं । निरुओऽवि असत्तो होइ अंतरायप्पभावेणं ॥ १२६० ॥ ना बयालीसा भेयाणं अहव होइ सत्तट्ठी । अहवावि ह तेणउई तिग अहियसयं हवइ अहवा ॥१२६१ ॥
पढमा बायालीसा गइ जाइ शरीर अंगुवंगे य । बंधण संघायण संघयण संठाण नामं च ॥१२६२ ॥ तह वन्न गंध रस फास नाम अगुरुलहुयं च बोद्धव्वं । उवघाय पराघायाऽणुपुव्वि ऊसास नामं च ॥१२६३ ॥ आयावज्जोय विहायगई तस थावराभिहाणं च । बायर सुमं पज्जत्ता - पज्जत्तं च नायव्वं ॥ १२६४ ॥ पत्तेयं साहारण थिरमथिर सुभासुभं च नायव्वं । सूभग दूभग नामं सूसर तह दूसरं चेव ॥ १२६५ ॥ आएज्ज मणाज्जं जसकित्तीनाम अजसकित्ती य । निम्माणं तित्थयरं भेयाणवि हुंति मे भेया ॥ १२६६ ॥
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द्वार २९६
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