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प्रवचन-सारोद्धार
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६. कालनिधि—इस निधि में काल सम्बन्धी ज्ञान, तीनों वंशों में होने वाले भूत-भावी-वर्तमान सम्बन्धी महापुरुषों का वर्णन तथा प्रजा के लिये हितकारी शिल्प एवं त्रिविध कर्म का वर्णन किया गया है॥१२२४ ।।
७. महाकालनिधि-महाकालनिधि में लोहा, चाँदी, सोना, मणि, मोती, स्फटिक आदि शिलायें तथा मूंगा आदि की उत्पत्ति तथा इनकी खानों का वर्णन है ।।१२२५ ।।।
८. माणवकनिधि—योद्धा, कवच तथा शस्त्रों की उत्पत्ति, सभी प्रकार की युद्धनीति एवं दंडनीति माणवकनिधि में वर्णित है॥१२२६ ।।
९. शंखमहानिधि-सभी प्रकार की नृत्यविधि, नाटकविधि, चतुर्विध काव्यों की रचनाविधि तथा सभी प्रकार के वादित्रों की उत्पत्ति की विधि इस निधि में वर्णित है ।।१२२७ ।।
प्रत्येक निधि आठ चक्रों पर प्रतिष्ठित, आठ योजन ऊँची, नौ योजन चौड़ी, बारह योजन लंबी पेटी में स्थित है तथा गंगा के मुख प्रदेश में विराजमान है ॥१२२८ ॥
इन निधिओं के दरवाजे वैडूर्यमणि के हैं। उन पर विविध रत्नों से जड़ित स्वर्णमय चन्द्र सूर्य एवं चक्र के चिह्न हैं। इन दरवाजों में प्रतिसमय पुद्गलों का चय-उपचय होता रहता है। ।१२२९ ॥
ये निधियाँ निधितुल्य नाम वाले, एक पल्योपम की आयु वाले देवों का आश्रय स्थान हैं। इन निधियों पर देवों का आधिपत्य अक्रेतव्य है अर्थात् स्वाभाविक है ।।१२३०॥
ये निधियाँ प्रभूत धन-रत्नों के संग्रह से समृद्ध हैं और सभी चक्रवर्तियों के वश मे रहती हैं ॥१२३१॥
-विवेचन१. नैसर्प २. पाण्डुक
३. पिंगलक ४. सर्वरत्न ५. महापद्म
६. काल ७. महाकाल ८. माणवक
९. शंख पूर्वोक्त नव-निधानों में संपूर्ण विश्व की व्याख्या करने वाली कल्प पुस्तकें हैं। इसीलिये ये निधान = अपूर्व खजाना कहलाते हैं। किस निधि में किस की व्याख्या बताई है, उसका वर्णन निम्नलिखित है ॥१२१८ ॥
- इस निधि में ग्राम, आकर, नगर, पत्तन, द्रोणमुख, मडम्ब, स्कन्धावार,
गृह व आपणों की रचना से सम्बन्धित व्याख्या है। • ग्राम = जिसके चारों ओर वाड़ लगी हो। आकर = खान, जहाँ नमक आदि उत्पन्न होते
हों। नगर = राजधानी । पत्तन = जहाँ जल-स्थल दोनों मार्गों से निर्गम-प्रवेश अर्थात् गमनागमन होता हो । द्रोणमुख = जहाँ केवल जल मार्ग से ही निर्गम व प्रवेश हो । मडम्ब
= जिसके चारों ओर ढाई कोस तक कोई गाँव न हो। स्कंधावार = सेना की छावनी । गृह = घर, भवन । आपण = दुकान ॥१२१९ ।।
१. नैसर्प
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