SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वार २१३ २४० काले कालन्नाणं भव्व पुराणं च तिसुवि वंसेसु । सिप्पसयं कम्माणि य तिन्नि पयाए हियकराई ॥१२२४ ॥ लोहस्स य उप्पत्ती होइ महाकाल आगराणं च। रूप्पस्स सुवण्णस्स य मणिमोत्तियसिलप्पवालाणं ॥१२२५ ॥ जोहाण य उप्पत्ती आवरणाणं च पहरणाणं च । सव्वा य जुद्धनीई माणवगे दंडनीई य ॥१२२६ ॥ नट्टविही नाडयविही कव्वस्स चउव्विहस्स निप्फत्ती। संखे महानिहिम्मि उ तुडियंगाणं च सव्वेसिं ॥१२२७ ॥ चक्कट्ठपइट्ठाणा अट्ठस्सेहा य नव य विक्खंभे। बारस दीहा मंजूससंठिया जण्हवीए मुहे ॥१२२८ ॥ वेरुलियमणिकवाडा कणयमया विविहरयणपडिपुन्ना। ससिसूरचक्कलक्खण अणुसमवयणोववत्तीया ॥१२२९ ॥ पलिओवमट्टिईया निहिसरिनामा य तत्थ खलु देवा। जेसिं ते आवासा अक्केज्जा आहिवच्चाय ॥१२३० ॥ एए ते नव निहिणो पभूयधणरयणसंचयसमिद्धा । जे वसमुवगच्छंति सव्वेसिं चक्कवट्टीणं ॥१२३१॥ -गाथार्थनवनिधि–१. नैसर्प २. पांडुक ३. पिंगलक ४. सर्वरत्न ५. महापद्म ६. काल ७. महाकाल ८. माणवक एवं ९. शंख-ये नौ महानिधि हैं ।।१२१८ ।। १. नैसर्पनिधि-नैसर्पनिधि में गाँव, खान, नगर, पत्तन, द्रोणमुख, मडंब, स्कंधावार एवं घर आदि के स्थापन की विधि बताई गई है ।।१२१९ ।। २. पांडुकनिधि-गणित, संगीत एवं मान-उन्मान का प्रमाण तथा धान्य सम्बन्धी बीजों की उत्पत्ति का वर्णन पांडुकनिधि में कहा गया है ।।१२२० । ३. पिंगलनिधि–पुरुष, स्त्री, घोड़े हाथी आदि की यथोचित आभरण-अलंकरण की संपूर्ण विधि, इस निधि में बताई गई है ।।१२२१ ।। ४. सर्वरत्ननिधि-सभी रत्नों में चक्रवर्ती के चौदह रत्न सर्वश्रेष्ठ होते हैं। ये रत्न इस निधि से उत्पन्न होते हैं ॥१२२२ ।। ५. महापद्मनिधि–सभी प्रकार के वस्त्रों के निर्माण की विधि, रचना विशेष, रंग, धातु आदि के निर्माण की विधि इस निधि में वर्णित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy