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प्रवचन-सारोद्धार
२३९
• वासुदेव के रत्न-वासुदेव के ७ रत्न होते हैं।
(i) चक्र (ii) खड्ग (iii) धनुष (iv) मणि (v) माला, जो कभी नहीं कुम्हलाती व देव प्रदत्त होती है (vi) गदा, प्रहरण विशेष, जिसका नाम कौमोदकी है (vii) शंख, पाँचजन्य नामक जिसकी ध्वनि १२ योजन तक फैलती है ॥१२१५ ॥
• रत्नों का प्रमाण• १ चक्र, छत्र व दण्ड, ये तीनों रत्न व्यामप्रमाण है।
व्याम = दोनों हाथ फैलाकर खड़े हुए पुरुष के दोनों हाथों की अङ्गलियों का अन्तराल ___ 'व्याम' कहलाता है।
४. चर्म रत्न दो हाथ विस्तृत होता है । ५. खड्गरत्न ३२ अङ्गल विस्तृत है । ६. मणिरत्न ४ अङ्गल लम्बा और २ अङ्गुल चौड़ा है। ७. सुवर्णकाकिणी ४ अङ्गुल प्रमाण है। सातों ही एकेन्द्रिय रत्नों का माप चक्रवर्ती के आत्मांगुल से मापा जाता है। पर शेष सात पंचेन्द्रिय रत्नों का माप तत् तत् कालीन पुरुषोचित प्रमाण से परिच्छेद्य होता है ॥१२१६-१७ ।।
|२१३ द्वार:
नवनिधि ९
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नेसप्पे पंडुयए पिंगलए सव्वरयण महपउमे । काले य महाकाले माणवग महानिही संखे ॥१२१८ ॥ नेसप्पंभि निवेसा गामगरनगरपट्टणाणं च। दोणमुहमडंबाणं खंधाराणं गिहाणं च ॥१२१९ ॥ गणियस्स य गीयाणं माणुम्माणस्स जं पमाणं च। धन्नस्स य बीयाणं उप्पत्ती पंडुए भणिया ॥१२२० ॥ सव्वा आहरणविही पुरिसाणं जा य जा य महिलाणं । आसाण य हत्थीण य पिंगलगनिहिम्मि सा भणिया ॥१२२१ ॥ रयणाई सव्वरयणे चउदस पवराई चक्कवट्टीणं । उप्पज्जंति एगिदियाइं पचिंदियाइं च ॥१२२२ ॥ वस्थाण य उप्पत्ती निप्फत्ती चेव सव्वभत्तीणं । रंगाण य धाऊण य सव्वा एसा महापउमे ॥१२२३ ॥
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