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१२. काकिणीरत्न
१३. खड्गरत्न १४. दण्डरत्न
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द्वार २१२
बाँधकर यदि कोई व्यक्ति युद्ध करने जाये तो उसे कभी शस्त्र नहीं लगता, वह सभी भय से मुक्त हो जाता है । यह मणि जिसके मणिबंध पर बँधा होता है उसका यौवन, केश व नख सदा अवस्थित रहते हैं ।
सुवर्णरत्न, चौकोर तथा विष-नाशक है। जहाँ सूर्य, चन्द्र व दीपक का प्रकाश उपयोगी नहीं बनता ऐसी तमिस्रागुफा में चक्रवर्ती की सेना को प्रवेश करने में यह रत्न अति उपयोगी है। इसकी किरणें १२ योजन तक प्रकाश फैलाती हैं। चक्रवर्ती की सेना में यह रात को दिन की तरह प्रकाशित करता है । काकिणी रत्न के द्वारा चक्रवर्ती तमिस्रा गुफा की पूर्व - पश्चिम की दीवारों पर क्रमशः २५ व २४ कुल ४९ मण्डल (प्रकाशपुंज) बनाता है । ये मण्डल ५०० धनुष प्रमाण गोल- विस्तृत, एक योजन तक प्रकाश करने वाले, परस्पर एक-एक योजन दूर चक्र की नेमि के आकार वाले, चन्द्र मण्डल सदृश वृत्ताकार, सुवर्णमयी रेखारूप गोमूत्रिका की रचना की तरह व्यवस्थित होते हैं। जैसे—
ये मण्डल तभी तक यथावस्थित रहते हैं जब तक चक्रवर्ती अपने पद पर रहता है। गुफा का द्वार भी तभी तक खुला रहता है । बाद में दोनों क्रमशः नष्ट व बन्द हो जाते हैं
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युद्ध
में जिसकी शक्ति अजेय होती है।
रत्नमय पाँच लताओं वाला, वज्र के सत्त्व से निर्मित शत्रु की सेना का नाशक, चक्रवर्ती की सेना के लिये विषम व उन्नत भू-भाग को समतल बनाने वाला । शान्ति कर्ता व चक्रवर्ती के हितकारी इच्छित मनोरथों को पूरा करने वाला । दिव्यशक्तिसंपन्न, अजेय व विशेष प्रयत्न से भूमि में १००० योजन नीचे तक प्रवेश करने में समर्थ है ।
• प्रत्येक रत्न १००० देवों से अधिष्ठित रहता है। प्रथम सात रत्न पंचेन्द्रिय हैं । चक्रादि सात रत्न एकेन्द्रिय व पृथ्विकाय रूप हैं। ये सात रत्न जंबूद्वीप में जघन्य से २८ होते हैं क्योंकि जघन्य से एक साथ ४ चक्रवर्ती हो सकते हैं। परन्तु उत्कृष्ट से ये रत्न २१० होते हैं, क्योंकि एक साथ जंबूद्वीप में ३० चक्रवर्ती हो सकते हैं । २८ विदेह में और एक-एक भरत ऐरवत क्षेत्र में । सात को तीस से गुणा करने पर ३० x ७ = २१० रत्न हुए ।। १२१४ ॥
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