________________
प्रवचन-सारोद्धार
२३७
३. पुरोहित ४.-५. गज-तुरग
६. वर्धकि
७. स्त्रीरत्न ८. चक्र
९.छत्ररत्न
- शान्ति कर्म करने वाला। - अति वेगवान और महापराक्रमी होते हैं । (गज = हाथी, तुरग
= घोड़ा) --- गृह आदि का निर्माण करने वाला। जो तमिस्रागुफा व खण्ड
प्रपातगुफा में उन्मग्नजला व निमग्नजला नदी पर चक्रवर्ती की
सेना को पार जाने के लिये पुल बनाता है। -. अद्भुत रूपवती और अतिशय रति-सुख देने वाली।
समस्त आयुधों में श्रेष्ठ व दुर्दमनीय शत्रुओं पर विजय प्राप्त
करने वाला। - चक्रवर्ती के छत्र की यह विशेषता है कि समय आने पर चक्रवर्ती
के हाथ का स्पर्श पाकर १२ योजन तक फैल जाता है। जब चक्रवर्ती दिग्विजय करते हुए वैताढ्य पर्वत पर जाता है तब उत्तर भाग में रहने वाले म्लेच्छ लोक मेघकुमार का आह्वान करते हैं। उनके अनुरोध से मेघकुमार चक्रवती के सैन्य पर भयंकर वर्षा करता है। उस समय छत्ररत्न फैलकर सेना की रक्षा करता है। इस छत्र में ९९ हजार स्वर्णमय शलाकायें होती हैं। इसका दण्ड निश्छिद्र, सुवर्णमय है । बस्तिप्रदेश (नीचे के भाग) में पञ्जर से सुशोभित, राजलक्ष्मी का चिह्न रूप है। जिसका पृष्ठदेश अर्जुन-सुवर्ण के आस्तरण वाला है। जो छत्र फैलने के बाद ऐसा लगता है मानो पूनम का चाँद चमक रहा हो। जो
धूप-वायु-वृष्टि आदि दोषों का नाशक है। - छत्र के नीचे बिछाया जाता है। यह भी छत्र की तरह चक्रवर्ती
के हाथ का स्पर्श पाकर १२ योजन तक फैलता है। इसमें सवेरे
बोया हुआ अनाज अपराह्न तक पककर तैयार हो जाता है। - मणिरत्न वैडूर्य का बना होता है। यह त्रिकोण व छह अंशों
वाला है। इसे छत्र और चर्मरत्न के बीच छत्र की तुंबी में रखते हैं। यह १२ योजन फैली हुई चक्रवर्ती की सेना को प्रकाश देने का काम करता है। तमिस्रागुफा व खण्डप्रपात गुफा में प्रवेश करते समय इसे हस्तिरत्न के सिर के दक्षिणभाग में बाँध देते हैं। जिससे तीनों दिशा प्रकाशित हो जाती हैं। जिसके हाथ व शिर में यह मणि बाँध दी जाये उसको देव-मनुष्य-तिर्यंचकृत उपद्रव व रोग कभी नहीं होते। इसे मस्तक या किसी अङ्ग में
१०. चर्मरत्न
११. मणिरत्न
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org