SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वार २१२ २३६ चक्कं खग्गं च धणू मणी य माला तहा गया संखो। एए सत्त उ रयणा सव्वेसिं वासुदेवाणं ॥१२१५ ॥ चक्कं छत्तं दंडं तिन्निवि एयाई वाममित्ताई।। चम्मं दुहत्थदीहं बत्तीसं अंगुलाइ असी ॥१२१६ ॥ चउरंगुलो मणी पुण तस्सद्धं चेव होइ विच्छिन्नो। चउरंगुलप्पमाणा सुवन्नवरकागिणी नेया ॥१२१७ ॥ -गाथार्थचौदह रत्न–१. सेनापति २. गृहपति ३. पुरोहित ४. हाथी ५. घोड़ा ६. सुथार ७. स्त्रीरत्न ८. चक्र ९. छत्र १०. चर्म ११. मणि १२ काकिणी १३. खड्ग एवं १४. दंड-ये चौदह रत्न हैं ॥१२१४ ।। __वासुदेव के रत्न-१. चक्र २. खड्ग ३. धनुष ४. मणिरत्न ५. माला ६. गदा तथा ७. शंख-ये सात रत्न सभी वासुदेवों के होते हैं ॥१२१५ ।। एकेन्द्रिय रत्नों का परिमाण–चक्र, छत्र एवं दंड इनका परिमाण तीन वाम का है। चर्मरत्न दो हाथ लंबा होता है। खड्गरत्न बत्तीस अङ्गल का होता है। मणिरत्न चार अङ्गल लंबा एवं दो अङ्गल चौड़ा होता है। चार अङ्गल परिमाण जाति सुवर्णमय काकिणी रत्न है ।।१२१६-१७ ।। -विवेचन रत्न = अपनी जाति की सर्वोत्तम वस्तु 'रत्न' कहलाती है। ये १४ हैं। सेनापति आदि अपनी जाति में शक्ति से उत्कृष्ट होने के कारण रत्न कहलाते हैं। १. सेनापति २. गृहपति ९. छत्र ३. पुरोहित १०. चर्म ४. गज ११. मणि ५. तुरग १२. काकिनी ६. वर्धकि १३. खड्ग ७. स्त्री १४. दण्ड १. सेनापति सेना का नायक, के पारवर्ती देशों को विजय करने में समर्थ । २. गृहपति - चक्रवर्ती की गृहव्यवस्था का निर्वाह करने में कुशल । गृहपति का काम शाली आदि धान्य, आम्र आदि फल तथा शाक आदि का उत्पादन करना है। ८. चक्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy