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प्रवचन-सारोद्धार
२३५
२१० द्वार:
वासुदेव
तिविठू य दुविठू य सयंभू पुरिसुत्तमे पुरिससीहे । तह पुरिसपुंडरीए दत्ते नारायणे कण्हे ॥१२१२ ॥
-विवेचन (i) त्रिपृष्ठ (iv) पुरुषोत्तम (vii) G71 (ii) द्विपृष्ठ (v) पुरुषसिंह (viii) नारायण (लक्ष्मण)
(ii) स्वयंभू (vi) पुरुष पुंडरीक (ix) कृष्ण ||१२१२ ॥ २११ द्वार :
प्रतिवासुदेव
आसग्गीवे तारय मेरय मधुकेढवे निसुंभे य। बलि पहराए तह रावणे य नवमे जरासंधे ॥१२१३ ॥
-विवेचन (i) अश्वग्रीव (ii) तारक (ii) मेरक (iv) मधुकैटभ (इनका नाम मधु ही है, किन्तु कैटभ नामक भ्राता के सम्बन्ध से इन्हें
‘मधुकैटभ' कहा जाता है।) (v) निशुंभ (vi) बलि (vii) प्रभाराज (प्रह्लाद) (viii) रावण (ix) जरासंध प्रतिवासुदेव क्रमश: वासुदेवों के शत्रु हैं, सभी प्रतिवासुदेव 'चक्रायुध' हैं। युद्ध में वासुदेव को मारने के लिए प्रतिवासुदेव चक्र छोड़ते हैं। किन्तु 'चक्र' वासुदेव का संहार करने के बजाय उन्हें प्रणाम करके उनके हाथ में आ जाता है। वासुदेव उसी चक्र का प्रतिवासुदेव को मारने के लिये उपयोग करते हैं। इस प्रकार प्रतिवासुदेव अपने ही चक्र द्वारा मरते हैं ॥१२१३ ॥
२१२ द्वार :
१४ रत्न
सेणावइ गाहावइ पुरोहिय गय तुरय वड्डइ इत्थी। चक्कं छत्तं चम्म मणि कागिणि खग्ग दंडो य ॥१२१४ ॥
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