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________________ २३४ ६. स्मृतिभ्रंश ७. अनादर ८. दुष्प्रणिधान आठों प्रकार का प्रमाद कर्मबंध का हेतु होने से त्याज्य है ।। १२०७-०८ ॥ २०८ द्वार : (i) (v) (ix) २०९ द्वार : (i) अचल (ii) विजय (iii) भद्र = Jain Education International = भरताधिप १२ चक्रवती हैं भरत शान्तिनाथ महापद्म = विस्मृति | अर्हंत परमात्मा के द्वारा प्रतिपादित धर्म के प्रति उद्यम न करना । मन-वचन-काया की दुष्ट प्रवृत्ति । भरहौ सगरो मघवं सणंकुमारो य रायसद्दूलो । संती कुंथू य अरो हवइ सुभूमो य कोरव्वो ॥ १२०९॥ नवमो य महापउमो हरिसेणो चेव रायसद्दूलो । जयनामो य नरवई बारसमो बंभदत्तो य ॥१२१०॥ -विवेचन (ii) सगर (vi) कुन्थुनाथ हरिषेण (x) अयले विजये भद्दे सुप्पभे य सुदंसणे । आणंदे नंदणे पउमे रामे यावि अपच्छिमे ॥१२११ ॥ -विवेचन (iv) सुप्रभ (v) सुदर्शन (vi) आनन्द (iii) मघवा (iv) (vii) अरनाथ (viii) (xi) जय (xii) (vii) नन्दन (viii) रामचन्द्र (ix) द्वार २०७-२०९ चक्रवर्ती For Private & Personal Use Only सनत्कुमार सुभूम ब्रह्मदत्त ।। १२०९-१० ।। बलदेव राम (कृष्णभ्राता - बलदेव) ॥१२११ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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