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६. स्मृतिभ्रंश
७. अनादर
८. दुष्प्रणिधान
आठों प्रकार का प्रमाद कर्मबंध का हेतु होने से त्याज्य है ।। १२०७-०८ ॥
२०८ द्वार :
(i)
(v)
(ix)
२०९ द्वार :
(i) अचल
(ii)
विजय
(iii)
भद्र
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भरताधिप १२ चक्रवती हैं
भरत
शान्तिनाथ
महापद्म
=
विस्मृति |
अर्हंत परमात्मा के द्वारा प्रतिपादित धर्म के प्रति उद्यम न करना । मन-वचन-काया की दुष्ट प्रवृत्ति ।
भरहौ सगरो मघवं सणंकुमारो य रायसद्दूलो । संती कुंथू य अरो हवइ सुभूमो य कोरव्वो ॥ १२०९॥ नवमो य महापउमो हरिसेणो चेव रायसद्दूलो । जयनामो य नरवई बारसमो बंभदत्तो य ॥१२१०॥ -विवेचन
(ii)
सगर
(vi) कुन्थुनाथ हरिषेण
(x)
अयले विजये भद्दे सुप्पभे य सुदंसणे ।
आणंदे नंदणे पउमे रामे यावि अपच्छिमे ॥१२११ ॥
-विवेचन
(iv) सुप्रभ
(v) सुदर्शन
(vi)
आनन्द
(iii) मघवा (iv)
(vii) अरनाथ
(viii)
(xi) जय
(xii)
(vii) नन्दन
(viii) रामचन्द्र
(ix)
द्वार २०७-२०९
चक्रवर्ती
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सनत्कुमार
सुभूम
ब्रह्मदत्त
।। १२०९-१० ।।
बलदेव
राम (कृष्णभ्राता - बलदेव) ॥१२११ ॥
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