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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org १ जीव सत्त्व १ २ अजीव असत्त्व २ ३ पुण्य सत्त्वासत्त्व ३ ४ पाप अज्ञानवादिओं के ६७ भेद अवक्तव्य ४ ५ आश्रव ६ संवर सत्त्व अवक्तव्य असत् अवक्तव्य ६ ५ ७ निर्जरा ८ बध सत्त्वासत्त्व-अवक्तव्य ७ ९ माक्ष जैसे जीव के सत्त्वादि सात भेद हैं वैसे अजीवादि आठ पदों के भी सात-सात भेद होते हैं । इस प्रकार अज्ञानवादी के कुल मिलाकर ९ x ७ = ६३ भेद हैं। १. भावोत्पति है. यह कौन जानता है और ऐसा जानने का प्रयोजन भी क्या है ? क्या प्रयोजन है ? ३. भावोत्पति सत्-असत् है ४. भावोत्पति अवक्तव्य है पूर्वोक्त ४ भेदों को ६३ भेदों २. भावोत्पति नहीं होती है – कौन जानता है और इसे जानने से - कौन जानता है और इसे जानने से क्या प्रयोजन है ? कौन जानता है और इसे जानने से क्या प्रयोजन हैं ? में मिलाने पर कुल ६३ + ४ = ६७ भेद अज्ञानवादियों के होते हैं । प्रवचन - सारोद्धार २३१
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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