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________________ प्रवचन-सारोद्धार २२५ (i) कालवादी-ये जगत को कालकत मानते हैं। इनका मानना है कि वक्षों पर फल लगना. स्त्रियों का गर्भवती होना, नक्षत्रों का उदय होना, पानी बरसना, ऋतुओं का बदलना, बाल-कुमार युवा होना, शरीर पर झुर्रियाँ पड़ना, बाल सफेद होना इत्यादि अवस्थाओं का भेद काल के बिना नहीं घट सकता। गेहूँ, चना आदि धान्य की फसलें भी काल के बिना पैदा नहीं होतीं। काल के बिना भोजन आदि भी नहीं पकता। यदि जगत को कालकृत न माना जाये तो ईंधन आदि सामग्री के मिलते ही मूंग आदि धान्य पक जाना चाहिये, परन्तु ऐसा कदापि नहीं होता। इससे सिद्ध होता है कि संपूर्ण जगत काल द्वारा निर्मित होता है। (ii) स्वभाववादी संपूर्ण जगत सहज स्वभाव से निर्मित है। इसके निर्माण में अन्य किसी तत्त्व का कुछ भी योगदान नहीं होता। देखा जाता है कि घड़ा मिट्टी से ही बनता है, सूत से नहीं। जबकि कपड़ा सूत से ही बनता है मिट्टी से नहीं। इसका कारण वस्तु का सहज स्वभाव ही है। मूंग इत्यादि धान्य के पकने में उसका स्वभाव ही कारण है अन्यथा ‘कोरडु' भी पकना चाहिये। इस प्रकार स्वभाव के साथ वस्तु का अन्वयव्यतिरेक होने से सिद्ध होता है कि जगत स्वभावकृत है। (iii) नियतिवादी—नियति एक ऐसा तत्त्व है, जिसके कारण सभी काम नियमित होते हैं। जैसे, जो काम जिस समय, जिससे होना होता है वह काम उस समय उसी से होता है। इस व्यवस्था का कारण नियति है। अन्यथा कार्य-कारणभाव की नियत व्यवस्था भंग हो जायेगी। कोई भी काम किसी भी कारण से व कभी भी होने लगेगा, पर ऐसा नहीं होता। कार्य-कारण की नियत व्यवस्था है। इससे सिद्ध होता है कि इसका नियामक कोई तत्त्व है और वह नियति है। उसका निराकरण कोई नहीं कर सकता। कहा है "सभी पदार्थ नियतरूप से होते हैं अत: वे नियतिजन्य हैं। उनका अन्वय-व्यतिरेक नियति के साथ ही घटता है। जो काम, जिस समय, जिससे होना होता है, वह काम, उससे, उसी समय होता है। इस प्रकार प्रत्यक्षसिद्ध नियति को अस्वीकार करने में कौन समर्थ है।" (iv) ईश्वरवादी–इनके मतानुसार जगत का कर्ता ईश्वर है। जिसमें सहज सिद्ध ज्ञान, वैराग्य, धर्म और ऐश्वर्य है वह ईश्वर है। वह प्राणीमात्र के स्वर्ग-अपवर्ग का प्रेरक है। कहा है "जिसमें ज्ञान, वैराग्य, धर्म और ऐश्वर्य सहज सिद्ध है वह ईश्वर है । जगत के सभी प्राणी अज्ञान व अपने सुख-दुःख के भोग में पराधीन है। ईश्वर की प्रेरणा से ही वे स्वर्ग या नरक में जाते हैं।" (v) आत्मवादी संपूर्ण विश्व को आत्मा का परिणाम मानने वाले आत्मवादी हैं। इनके मतानुसार आत्मा के सिवाय जगत में अन्य कुछ भी नहीं है। संपूर्ण जगत ब्रह्म का ही परिणाम है। कहा है “अलग-अलग देहों में व्यवस्थित आत्मा वास्तव में तो एक ही है। जैसे चन्द्र एक होते हुए भी भिन्न-भिन्न जलपात्रों में प्रतिबिंबरूप से अलग-अलग दिखाई देता है, वैसे अलग-अलग देह में आत्मा भी अलग-अलग दिखाई देता है। जो हुआ है और होगा वह सभी पुरुष-आत्मा ही है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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