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द्वार २०६
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अक्रियावादी के भेद-पुण्य पाप इन दो पदों के सिवाय जीवादि सात पदों की स्थापना करना चाहिये। इन पदों के नीचे स्वत: और परत: ये दो पद लिखकर इन दो के नीचे पुन: काल, यदृच्छा, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा छ: पदों की स्थापना करनी चाहिये ॥११९४-९५ ॥
'जीव स्वत: काल की अपेक्षा नहीं है' यह प्रथम भंग है। 'जीव परत: काल की अपेक्षा नहीं है' यह द्वितीय भंग है। इस प्रकार यदृच्छा आदि पदों के भी दो-दो भांगे होने से छ: पदों के कुल बारह भांगे हुए। जीव पद के बारह भांगों की तरह अजीवादि पदों के भी बारह-बारह भांगे होने से सात पदों के कुल चौरासी भांगे अक्रियावादी के होते हैं ॥११९६-९८ ।।
अज्ञानवादी के भेद-सत्, असत्, सदसत्, अवक्तव्य, सत् अवक्तव्य, असत् अवक्तव्य, सदसत् अवक्तव्य-इन सात पदों के नीचे क्रमश: जीवादि नौ पदों की क्रमश: स्थापना करके भांगों का जिस प्रकार अभिलाप किया जाता है वह बताया जा रहा है, उसे सुनो ॥११९९-१२०० ।।
_ 'जीव है' यह कौन जानता है? इसको जानने से क्या लाभ है? इस प्रकार 'असत्' आदि के साथ मिलकर जीव पद के सात भांगे हुए। अजीवादि शेष पदों के भी पूर्ववत् सात-सात भांगे होते हैं। सभी को एकत्रित करने पर नौ पदों के वेसठ भांगे हुए। अन्य चार भांगे इस प्रकार हैं। आगे कहे जायेंगे ॥१२०१-०२॥ ___भावोत्पत्ति है' यह कौन जानता है? इसको जानने से क्या लाभ है? इस प्रकार 'भावोत्पत्ति नहीं है' 'भावोत्पत्ति सदसत् है' तथा 'भावोत्पत्ति अवक्तव्य है' इन चार भांगों को पूर्वोक्त त्रेसठ भांगों के साथ मिलाने से अज्ञानियों के कुल सड़सठ भांगे हुए ॥१२०३-०४॥
विनयवादी के भेद-देव, राजा, यति, ज्ञातिजन, वृद्ध, दयापात्र, माता एवं पिता इन आठों का मन, वचन, काया एवं दान देकर विनय करना चाहिये। पूर्वोक्त आठ का मन आदि चार से गुणा करने पर विनयवादी के बत्तीस भेद होते हैं। क्रियावादी, अक्रियावादी आदि चारों के भेद मिलाने से कुल तीन सौ त्रेसठ भेद पूर्ण होते हैं ।।१२०५-०६ ।।
___-विवेचन १. क्रियावादी.... १८० भेद
पण्य पाप के बंध रूप क्रिया तथा आत्मा के
अस्तित्व को मानने वाले। २. अक्रियावादी.... ८४ भेद
आत्मा के अस्तित्व को नहीं मानने वाले। ३. अज्ञानवादी... ६७ भेद
अज्ञान को श्रेयस्कर मानने वाले। | ४. विनयवादी.... ३२ भेद ।
विनय को श्रेष्ठ मानने वाले ॥११८८ ।। १. क्रियावादी
संसार की विचित्रता देखने से सिद्ध होता है कि पुण्य-पाप रूप क्रियायें हैं। कोई भी क्रिया कर्ता के बिना नहीं हो सकती। अत: क्रिया का कोई कर्ता अवश्य है। जो है वह आत्मा है क्योंकि आत्मा के सिवाय ये क्रियायें अन्यत्र संभवित नहीं हो सकतीं। ऐसा मानने वाले क्रियावादी हैं। इसके ५ भेद हैं-(i) कालवादी (ii) स्वभाववादी (iii) नियतिवादी (iv) ईश्वरवादी और (v) आत्मवादी।
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