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________________ द्वार २०३ २१६ --00:42-Addoodcloss. BRARAM . २०३ द्वार: आगति परिणामविसुद्धीए देवाउयकम्मबंधजोगाए । पचिंदिया उ गच्छे नरतिरिया सेसपडिसेहो ॥११७७ ॥ आईसाणा कप्पा उववाओ होइ देवदेवीणं । तत्तो परं तु नियमा देवीणं नत्थि उववाओ ॥११७८ ॥ -गाथार्थदेवों की आगति-परिणाम की विशुद्धि के द्वारा देवायु का बंध करने वाले मनुष्य एवं तिर्यंच ही देवगति में उत्पन्न होते हैं। शेष जीवों का देवगति में आगमन निषिद्ध है। देव और देवी की उत्पत्ति ईशान देवलोक पर्यन्त ही होती है। उससे ऊपर के देवलोक में देवियों की उत्पत्ति नहीं होती ॥११७७-७८ ॥ -विवेचनपरिणाम = मानसिक व्यापार अर्थात् भाव, विशुद्धि = शुद्धता अर्थात् परिणामों की शुद्धता परिणाम विशुद्धि है। ___ वह दो प्रकार का है। विशुद्ध और अविशुद्ध । विशुद्ध परिणाम देवगति का कारण है। इससे सिद्ध हुआ कि शुभ, अशुभ गति का कारण मानसिक परिणाम है। . परिणाम की उत्कृष्ट विशुद्धि मुक्ति का कारण है। अत: उसकी निवृत्ति के लिये कहा है कि देव आयु के बन्धन योग्य विशुद्धि वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च व मनुष्य ही देव में जाते हैं, अन्य नहीं। ऐसा समझना चाहिये। १. १० भवनपति, १६ व्यन्तर, १५ परमाधामी, १० जृम्भक में–१०१ प्रकार के लब्धि-पर्याप्ता मनुष्य, युगलिक चतुष्पद, गर्भज-संमूर्छिम लब्धि पर्याप्ता १० तिर्यञ्च (जलचर, स्थलचर, खेचर, उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प, ५ गर्भज और ५ संमूर्छिम = १० तिर्यंच) उत्पन्न होते हैं। २. १० ज्योतिषी और सौधर्म में—अन्तर्वीप सिवाय के गर्भज लब्धि-पर्याप्ता मनुष्य और ५ गर्भज तिर्यंच आकर उत्पन्न होते हैं। ३. ईशान में हिमवन्त और हिरण्यवन्त को छोड़कर २० अकर्मभूमि के लब्धिपर्याप्ता मनुष्य और १५ कर्मभूमिज मनुष्य व ५ संज्ञी तिर्यंच उत्पन्न होते हैं। ४. निम्न किल्विषी में संख्यातायुषी गर्भज पर्याप्ता मनुष्य और तिर्यंच, देवकुरु-उत्तरकुरु के युगलिक नर-तिर्यंच उत्पन्न होते हैं। ५. सनत से सहस्रार में—संख्यातायुषी गर्भज पंचेन्द्रिय नर-तिर्यंच उत्पन्न होते हैं। ६. आनत से सर्वार्थसिद्ध में संख्यातायुषी मात्र मनुष्य उत्पन्न होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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