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________________ प्रवचन-सारोद्धार २१५ (v) नवमें देवलोक से सर्वार्थसिद्ध तक के देवता। एक समय में संख्याता जन्मते और मरते हैं क्योंकि इनमें गर्भज-पर्याप्ता मनुष्य ही पैदा होते हैं और ये मरकर गर्भज पर्याप्ता मनुष्य में ही जाते हैं तथा गर्भज पर्याप्ता मनुष्य संख्याता ही हैं ॥११७३ ।। २०२ द्वार : गति 3.6000000000000000000000 पुढवीआउवणस्सइ गब्भे पज्जत्तसंखजीवीसुं । सग्गच्चुयाण वासो सेसा पडिसेहिया ठाणा ॥११७४ ॥ बायरपज्जत्तेसुं सुराण भूदगवणेसु उप्पत्ती । ईसाणंताणं चिय तत्थवि न उवट्टगाणंपि ॥११७५ ॥ आणयपभिईहिंतो जाऽणुत्तरवासिणो चवेऊणं । मणुएसुं चिय जायइ नियमा संखिज्जजीविसुं ॥११७६ ॥ -गाथार्थदेवों की गति-स्वर्ग से च्यवकर देवता, पृथ्वी, जल, वनस्पति, गर्भज पर्याप्ता संख्याता वर्ष की आयु वाले मनुष्य और तिर्यंच में जाते हैं। शेष गतियों में जाने का निषेध है।।११७४ ।। बादर पर्याप्ता पृथ्वीकाय, अप्काय एवं प्रत्येक वनस्पतिकाय में, ईशान देवलोक तक के देवता ही जाते हैं। इससे ऊपरवर्ती देवता नहीं जाते। आनत देवलोक से अनुत्तर पर्यंत के देव च्यवकर संख्याता वर्ष की आयु वाले मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं॥११७५-७६ ॥ -विवेचन१. भवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी और सौधर्म ईशान के देवता मरकर-संख्याता आयु वाले लब्धि पर्याप्ता गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य, बादर पर्याप्ता पृथ्वी, पानी और प्रत्येक वनस्पति में जाते हैं। इनका अन्यत्र गमन निषिद्ध है। २. सनत से सहस्रार पर्यन्त के देवता-संख्यातायुषी लब्धि पर्याप्ता गर्भज पंचेन्द्रिय नर-तिर्यंच में जाते हैं। ३. आनत से सर्वार्थसिद्ध पर्यंत के देवता-संख्यातायुषी लब्धि पर्याप्ता गर्भज पंचेन्द्रिय मनुष्य में ही जाते हैं ॥११७४-७६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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