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२०० द्वार :
उववायविरहकालो एसो जह वण्णिओ य देवेसु ।
उव्वट्टणावि एवं सव्वेसि होइ विन्नेया ॥ ११७२ ॥ -गाथार्थ
देवों का मरण-विरहकाल - उपपात विरह काल की तरह ही देवों का मरण विरहकाल भी समझना चाहिये ॥ ११७२ ।।
-विवेचन
उपपात के विरहकाल की तरह मृत्यु का विरह काल है। उसका काल परिमाण उपपात - विरह काल की तरह ही होता है ॥ ११७२ ॥
२०१ द्वार :
भवनपति निकाय में
(ii)
व्यन्तर निकाय में
(iii) ज्योतिष् निकाय में
(iv)
प्रथम देवलोक से ८वें तक ।
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उद्वर्तना-विरह
एक्को व दो व तिन्नि व संखमसंखा य एगसमएणं । उववज्जंतेवइया उव्वट्टंतावि एमेव ॥ ११७३ ॥
द्वार २००-२०१
-गाथार्थ
देवों के उपपात एवं उद्वर्तन की संख्या - देवों के जघन्य उपपात की संख्या एक-दो या तीन है । उत्कृष्ट उपपात संख्या संख्याता व असंख्याता है । उद्वर्तन की संख्या उपपातवत् ही समझना
चाहिये ।। ११७३ ।।
-विवेचन-
सामान्य और विशेष दो प्रकार का
जन्म-मरण-संख्या
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जघन्य से एक समय में १-२-३ जन्मते और मरते हैं । उत्कृष्ट से संख्याता और असंख्याता जन्मते और मरते हैं 1
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