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________________ प्रवचन - सारोद्धार (१) (२) -विवेचन देवों का शरीर प्रमाण दो प्रकार का है— (i) भवधारणीय (ii) उत्तरवैक्रिय । भवधारणीय- जन्म से उपलब्ध शरीर प्रमाण । उत्तरवैक्रिय- वैक्रिय शक्ति से बनाया गया शरीरप्रमाण । (४) (५) (६) (७) (i) भवधारणीय— भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी, १-२ देवलोक तीसरा- चौथा देवलोक पाँचवां छठा देवलोक सातवां आठवां देवलोक ७ हाथ ७ हाथ ६ हाथ ५ हाथ ४ हाथ ३ हाथ २ हाथ अनुत्तर विमान १ हाथ उपरोक्त देवों की भवधारणीय जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । जघन्य अवगाहना का यह माप शरीर रचना के प्रारम्भकालीन है ॥११५५-११५६ ॥ ९- १०-११-१२वां देवलोक नौ ग्रैवेयक (ii) उत्तरवैक्रिय उपरोक्त देवों की (नौ ग्रैवेयक और पाँच अनुत्तर को छोड़कर) उत्तरवैक्रिय उत्कृष्ट अवगाहना क लाख योजन प्रमाण है । • नौ ग्रैवेयक और पाँच अनुत्तर को छोड़कर उपरोक्त देवों की उत्तरवैक्रिय जघन्य अवगाहना अंगुल का संख्यातवां भाग है । • उत्तरवैक्रिय पर्याप्त अवस्था में ही होता है इसलिये उस समय छोटे से छोटा शरीर भी बनाना चाहे तो अंगुल के संख्यातवें भाग जितना ही बनाया जा सकता है, क्योंकि जीव प्रदेशों का संकोच इतना ही हो सकता है। • २०७ वेयक और पाँच अनुत्तरवासी देवों के उत्तरवैक्रिय शरीर नहीं होता, क्योंकि उत्तरवैक्रिय शरीर गमनागमन तथा परिचारणा (विषय-सेवन) के निमित्त ही बनाया जाता है और इन देवों के ये प्रयोजन नहीं होते ।११५७-५८ ॥ लेश्या १९७ द्वार : Jain Education International किण्हा नीला काऊ तेऊलेसा य भवणवंतरिया । जोइससोहंमीसाण तेऊलेसा मुणेयव्वा ॥ ११५९ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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