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________________ २०६ द्वार १९५-१९६ उ.3000303030823200303600030860:05030038530:30:30 2 0 1 :38::::::154:558220 १०७ 7 १०० (iv) माहेन्द्र ८०,०००० (iv) विशाल (v) ब्रह्मलोक ४,००,००० (v) सर्वतोभद्र (vi) लांतक ५०,००० (vi) सुमन (vii) महाशुक्र ४०,००० (vii) सौमनस् (viii) सहस्रार ६,००० (viii) प्रीतिकर (ix) आनत चार सौ (ix) आदित्य प्राणत चार सौ (x) अनुत्तर (xi) आरण तीन सौ (xii) अच्युत तीन सौ कुल विमानों की संख्या ८४,९७,०२३ है ॥११५१-११५४ ।। |१९६ द्वार: देहमान भवणवणजोइसोहम्मीसाणे सत्त हंति रयणीओ। एक्केक्कहाणि सेसे दु दुगे य दुगे चउक्के य ॥११५५ ॥ गेविज्जेसुं दोन्नि य एगा रयणी अणुत्तरेसु भवे । भवधारणिज्ज एसा उक्कोसा होइ नायव्वा ॥११५६ ॥ सव्वेसुक्कोसा जोयणाण वेउव्विया सयसहस्सं । गेविज्जणुत्तरेसुं उत्तरवेउव्विया नत्थि ॥११५७ ॥ अंगुलअसंखभागो जहन्न भवधारणिज्ज पारंभे। संखेज्जा अवगाहण उत्तरवेउब्विया सावि ॥११५८ ॥ -गाथार्थदेवों की अवगाहना-भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी एवं सौधर्म-ईशान देवलोक के देवों की अवगाहना सात हाथ की है। ऊपर के तीन युगल एवं देवलोक चतुष्क में एक-एक हाथ न्यून अवगाहना होती है। नौ ग्रैवेयक में दो हाथ एवं पाँच अनुत्तर विमान में एक हाथ की अवगाहना है। पूर्वोक्त अवगाहना भवधारणीय शरीर की अपेक्षा से समझना चाहिये ।।११५५-५६ ॥ चारों निकाय के देवों की उत्तरवैक्रिय अवगाहना एक लाख योजन की है। ग्रैवेयक और अनुत्तर विमान में उत्तर वैक्रिय शरीर नहीं होता ।।११५७ ॥ देवों के भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की है तथा उत्तर वैक्रिय की जघन्य अवगाहना अंगुल के संख्यातवें भाग की है।।११५८ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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