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________________ प्रवचन-सारोद्धार २०५ -विवेचनभवनपति के भवन-रत्नप्रभा नरक की १,८०,००० योजन की मोटाई में से ऊपर नीचे १०००-१००० योजन छोड़कर शेष बचे हुए १,७८,००० योजन प्रमाण मध्य भाग में भवनपति देवों के भवन हैं। अन्यमतानुसार-ऊपर से ९०००० योजन छोड़कर देवों के भवन हैं। अन्यमतानुसार—ऊपर नीचे १००० योजन छोड़कर सर्वत्र भवन हैं। देव दक्षिणोत्तर भवनों की संख्या (i) असुरकुमार ६४,००,००० भवन संख्या (ii) नागकुमार ८४,००,००० भवन संख्या (iii) सुवर्णकुमार ७२,००,००० भवन संख्या (iv) वायुकुमार ९६,००,००० भवन संख्या (v) द्वीपकुमार ७६,००,००० भवन संख्या (vi) दिक् कुमार ७६,००,००० भवन संख्या (vii) उदधि कुमार ७६,००,००० भवन संख्या (viii) विद्युत कुमार ७६,००,००० भवन संख्या (ix) स्तनित कुमार ७६,००,००० भवन संख्या (x) अग्नि कुमार ७६,००,००० भवन संख्या कुल भवन ७,७२,००,००० ॥११४७-११४९ ॥ व्यन्तर नगर-रत्नप्रभा नरक के ऊपर-नीचे के १००० योजन में से १००-१०० योजन छोड़कर शेष ८०० योजन में व्यन्तर नगर हैं। वे बड़े रम्य हैं। वहाँ व्यन्तर देव, देवियों के साथ गीत, नृत्यादि का आनन्द लेते हुए सदा मग्न रहते हैं। संख्या असंख्याता हैं। मनुष्य क्षेत्र के बाहर द्वीप-समुद्र में जो व्यन्तर नगर हैं उनका स्वरूप 'जीवाभिगम' में स्पष्ट किया है। ज्योतिष के विमान-समभूतला पृथ्वी से ७९० योजन ऊपर ११० योजन के विस्तार में ज्योतिष देवों के विमान हैं। संख्या–व्यन्तर नगरों की अपेक्षा से संख्यातगुण अधिक होते हैं ॥११५०॥ १२ देवलोक की विमान संख्या ग्रैवेयक विमान संख्या (i) सौधर्म ३२,००,००० (i) सुदर्शन - (ii) ईशान २८,००,००० (ii) सुप्रतिबुद्ध । १११ (iii) सनत्कुमार १२,००,००० (iii) मनोरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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