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चट्ठी असुराणं नागकुमाराण होइ चुलसीई । बावत्तरि कणगाणं वाउकुमाराण छन्नउई ॥११४८ ॥ दीवदिसाउदहीणं विज्जुकुमारिंदथणियअग्गीणं । छण्हंपि जुयलयाणं बावत्तरिमो सयसहस्सा ॥११४९ ॥ इह संति वणयराणं रम्मा भोमनयरा असंखिज्जा । तत्तो संखिज्जगुणा जोइसियाणं विमाणाओ ॥ ११५० ॥ बत्तीसऽट्ठावीसा बारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा । आरेण बंभलोया विमाणसंखा भवे एसा ॥११५१ ॥ पंचास चत्त छच्चेव सहस्सा लंत सुक्क सहस्सारे । सय चउरो आणयपाणएसु तिन्नारणच्चुयए ॥११५२ ॥ एक्कारसुत्तरं मेसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए । सयमेगं उवरिमए पंचेव अणुत्तरविमाणा ॥ ११५३॥ चुलसीई सयसहस्सा सत्ताणउई भवे सहस्साइं । तेवीसं च विमाणा विमाणसंखा भवे एसा ॥ ११५४ ॥ -गाथार्थ
देवों के भवन — भवनपति देवों के भवन की कुल संख्या सात करोड़ बहत्तर लाख है ।। ११४७ ।।
असुरकुमार देवों की भवन संख्या चौसठ लाख, नागकुमार की चौरासी लाख, सुवर्णकुमार की बहत्तर लाख, वायुकुमार की छन्नु लाख, द्वीपकुमार, दिक्कुमार उदधिकुमार, विद्युत्कुमार स्तनित कुमार एवं अग्निकुमार - इनमें से प्रत्येक की भवन संख्या छिहोत्तर लाख है ।। ११४८-४९ । ।
यहाँ व्यन्तरों के अत्यन्त रमणीय असंख्याता नगर है। उससे संख्यात गुण अधिक ज्योतिषी के नगर हैं ।। ११५० ॥
सौधर्म देवलोक से ब्रह्मदेवलोक पर्यन्त विमानों की संख्या क्रमशः बत्तीस लाख, अट्ठावीस लाख, बारह लाख, आठ लाख एवं चार लाख है ।। ११५१ ।।
द्वार १९५
लांतक, महाशुक्र तथा सहस्रार में क्रमश: पचास हजार, चालीस हजार तथा छः हजार विमान हैं। आनत-प्राणत और आरण - अच्युत युगल में क्रमश: चार सौ और तीन सौ विमान हैं ।। ११५२ ।। निम्न ग्रैवेयक त्रिक में एक सौ ग्यारह मध्यम ग्रैवेयक त्रिक में एक सौ सात एवं ऊपरवर्ती ग्रैवेयक त्रिक में एक सौ विमान हैं । अनुत्तर पाँच विमान हैं ।। ११५३ ।।
कुल मिलाकर चौरासी लाख सत्ताणु हजार तेवीस विमान वैमानिक देवों के हैं । । ११५४ ।।
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