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________________ प्रवचन-सारोद्धार १७९ 20040340414238000086/ 00003500 • पृथ्वी, अप, तेजस् और वायुकाय के जीवों की कायस्थिति, काल की अपेक्षा असंख्याता उत्सर्पिणी अवसर्पिणी है। • असंख्यात-लोकाकाश के प्रदेशों में से प्रतिसमय एक-एक प्रदेश का अपहार करने पर जितना समय लगता है इतनी उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल प्रमाण पृथ्वी आदि जीवों की कास्थिति है। • काल की अपेक्षा वनस्पतिकाय की उत्कृष्ट काय-स्थिति अनन्त उत्सर्पिणी अवसर्पिणी है। . क्षेत्र की अपेक्षा अनन्त लोकाकाश में से प्रतिसमय एक-एक प्रदेश का अपहार करने पर जितना समय लगता है अर्थात् क्षेत्र की अपेक्षा वनस्पतिकाय की कायस्थिति असंख्येय पुद्गल परावर्त है। यह असंख्याता का प्रमाण आवलिका के असंख्यात भाग में जितने समय होते हैं, तत्तुल्य समझना। • सूक्ष्म निगोद के जीव दो प्रकार के होते हैं—सांव्यवहारिक और असांव्यवहारिक। सांव्यवहारिक सूक्ष्म निगोद से निकलकर जो जीव पृथ्वी आदि में उत्पन्न हो चुके हों अर्थात् जो जीव 'यह पृथ्विकायिक है'.'यह अप्कायिक है' इत्यादि व्यवहार के योग्य बन चुके हों वे सांव्यवहारिक है। एक बार व्यवहार राशि में आने के बाद पुन: निगोद में चले जाने पर भी वह सांव्यवहारिक कहलाता है। असांव्यवहारिक-जो जीव अनादिकाल से सूक्ष्म निगोद में ही पड़े हैं, अभी तक पृथ्वी आदि व्यवहार दशा में नहीं आये हैं वे असांव्यवहारिक हैं। . पूर्वोक्त कायस्थिति सांव्यवहारिक जीवों की अपेक्षा से है। असांव्यवहारिक जीवों की अपेक्षा से तो वह अनादि है। अत: मरुदेवी माता के प्रसंग से कोई व्यभिचार नहीं होगा। मरुदेवी माता का जीव वनस्पति से निकलकर मोक्ष गया था किन्तु सांव्यवहारिक जीव होने के कारण उनके मोक्षगमन में किसी प्रकार की बाधा नहीं है। श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने कहा है कि कायस्थिति का कालमान भिन्न-भिन्न जीवों की अपेक्षा से भिन्न-भिन्न है। जो जीव संव्यवहार से बाह्य हैं, अर्थात् असंव्यावहारिक है, उनकी कायस्थिति अनादि अवश्य है पर कुछ जीवों की अनादि अनंत है व कुछ जीवों की अनादि सांत है। अनादि अनंत कायस्थिति वाले जीव असंव्यवहार राशि से निकलकर कभी भी संव्यवहार राशि में नहीं आयेंगे। जो अनादि सांत स्थिति वाले हैं वे एक दिन अवश्य संव्यवहार राशि में आवेंगे। • जो असांव्यवहारिक जीव कभी भी व्यवहार राशि में नहीं आयेंगे, उनकी अपेक्षा से कायस्थिति अनादि अनन्त है तथा जो असांव्यवहारिक जीव समय आने पर व्यवहार राशि (पृथ्वी आदि) में उत्पन्न होंगे, उनकी अपेक्षा से कायस्थिति अनादि सान्त हैं। प्रश्न-अव्यवहार राशि से निकलकर जीव व्यवहार राशि में कैसे आता है? समाधान- विशेषणवती ग्रंथ में कहा है—यह प्रकृति का नियम है कि जितने जीव व्यवहार राशि से निकलकर सिद्ध बनते हैं, उतने ही जीव अव्यवहार राशि से निकलकर व्यवहार राशि में आ जाते हैं। जो जीव अनादि सूक्ष्म निगोद से निकलकर अन्य जीवनिकाय अर्थात् पृथ्विकाय आदि में उत्पन्न होते हैं, वे जीव पृथ्वि....अप् आदि विविध व्यवहार के योग्य बन जाने के कारण सांव्यवहारिक कहलाते हैं। किन्तु जो अनादिकाल से सूक्ष्म निगोद में हैं, वे असांव्यवहारिक कहलाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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