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________________ प्रवचन-सारोद्धार १५९ ::::: 6000-60 d oessonsib00rsovodoor १७० द्वार : प्राण इंदिय बल ऊसासा उ पाण चउ छक्क सत्त अटेव। इगि विगल असन्नी सन्नी नव दस पाणा य बोद्धवा ॥१०६६ ॥ -गाथार्थप्राण दस-५ इन्द्रिय, ३ बल, श्वासोच्छ्वास और आयु–ये दस प्राण हैं। इनमें से एकेन्द्रिय के चार, विकलेन्द्रिय के क्रमश: छः, सात और आठ, असंज्ञी के नौ तथा संज्ञी के दस प्राण होते हैं ।।१०६६ ॥ -विवेचन(i) इन्द्रिय = ५ स्पर्शेन्द्रिय, रसेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रोत्रेन्द्रिय (ii) बल = ३ मनबल, वचनबल और कायबल (iii) श्वासोच्छ्वास = १ (iv) आयु किसमें कितने प्राण हैं? (i) एकेन्द्रिय ४ प्राण (स्पर्शनेन्द्रिय, कायबल, श्वासोच्छ्वास, आयु ) (ii) द्वीन्द्रिय ६ प्राण (रसनेन्द्रिय, वचनबल सहित पूर्वोक्त ४ = ६) (ii) त्रीन्द्रिय ७ प्राण (घ्राणेन्द्रिय सहित पूर्वोक्त ६ = ७) (iv) चतुरिन्द्रिय ८ प्राण (चक्षुरिन्द्रिय सहित पूर्वोक्त ७ = ८) (v) असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय = ९ प्राण (श्रोत्रेन्द्रिय सहित पूर्वोक्त ८ = ९) (vi) संज्ञी पञ्चेन्द्रिय = १० प्राण (मनबल सहित पूर्वोक्त ९ =१०)॥१०६६ ।। १७१ द्वार: कल्पवृक्ष मत्तंगया य भिंगा तुडियंगा दीव जोइ चित्तंगा। चित्तरसा मणियंगा गेहागारा अणियणा य ॥१०६७ ॥ मत्तंगएसु मज्जं सुहपेज्जं भायणा य भिंगेसु। तुडियंगेसु य संगयतुडियाइं बहुप्पगाराई ॥१०६८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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