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द्वार १६२
वर्गणा, आहारक ग्रहण योग्य वर्गणा, तैजस् ग्रहण योग्य वर्गणा, भाषा ग्रहण योग्य वर्गणा,
श्वासोच्छ्वास ग्रहण योग्य वर्गणा, मनोग्रहण योग्य वर्गणा और कार्मण ग्रहण योग्य वर्गणा। १. बादर द्रव्य पुद्गल परावर्त—जितने समय में एक जीव समस्त परमाणुओं को अपने औदारिक, वैक्रिय, तैजस्, भाषा, आनपान, मन और कार्मणशरीर रूप में परिणमाकर उन्हें भोगकर छोड़ देता है उस समय की इकाई को बादर द्रव्य पुद्गल परावर्त कहते हैं। यहाँ आहारक शरीर को छोड़ दिया है, क्योंकि
आहारक शरीर एक जीव के अधिक से अधिक चार बार ही हो सकता है। अत: वह पुद्गल परावर्त के लिये उपयोगी नहीं है ॥१०४१-१०४२ ॥
२. सूक्ष्म द्रव्य पुद्गल परावर्त—जितने समय में जीव समस्त परमाणुओं को औदारिक आदि सात वर्गणाओं में से किसी एक वर्गणारूप में परिणत कर उन्हें ग्रहण करके छोड़ देता है, उतने समय को सूक्ष्म द्रव्य पुद्गल परावर्त कहते हैं। बादर में तो समस्त परमाणुओं को सात रूप से भोगकर छोड़ता है
और सूक्ष्म में उन्हें केवल किसी एक रूप से ग्रहण करके छोड़ देता है। यहाँ इतना विशेष जानना चाहिये कि यदि समस्त परमाणुओं को एक औदारिक शरीर रूप में परिणत करते समय मध्य-मध्य में कुछ परमाणुओं को वैक्रिय आदि शरीर रूप में ग्रहण करके छोड़ दे, या समस्त परमाणुओं को वैक्रिय शरीर रूप में परिणत करते समय मध्य-मध्य में कुछ परमाणुओं को औदारिक आदि शरीर रूप से ग्रहण करके छोड़ दे तो वे गणना में नहीं लिये जाते। जिस शरीर रूप में परिवर्तन चालू है, उसी शरीर रूप में जो पुद्गल परमाणु ग्रहण करके छोड़े जाते हैं, उन्हीं का सूक्ष्म में ग्रहण किया जाता है।
द्रव्य पुद्गल परावर्त के बारे में एक दूसरा मत भी है, जो इस प्रकार है–समस्त पुद्गल परमाणुओं को औदारिक, वैक्रिय, तैजस् और कार्मण इन चार शरीर रूप में ग्रहण करके छोड़ देने में जीव को जितना काल लगता है, उसे बादर द्रव्य पुद्गल परावर्त कहते हैं और समस्त पुद्गल परमाणुओं को उक्त चारों शरीरों में से किसी एक शरीर रूप में परिणत कर छोड़ देने में जितना काल लगता है उतने काल को सूक्ष्म द्रव्य पुद्गल परावर्त कहते हैं।
• शब्द के अर्थ बोध के दो निमित्त हैं-(i) व्युत्पत्ति निमित्त (ii) प्रवृत्ति निमित्त । i. समस्त
पुद्गल परमाणुओं को औदारिकादि विवक्षित किसी एक शरीर के रूप में परिणत कर छोड़ देने में जितना काल लगता है वह काल पुद्गल परावर्त है। यह पुद्गल परावर्त का व्युत्पत्ति निमित्त है। ii. अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रमाण काल, पुद्गल परावर्त शब्द का प्रवृत्ति निमित्त है । 'क्षेत्र पुद्गल परावर्त' में शब्द का व्युत्पत्ति निमित्त घटित न होने पर भी प्रवृत्तिनिमित्त घटित होता है अत: उसे 'पुद्गल परावर्त' कहने में कोई विरोध नहीं आता। जैसे 'गौ' शब्द का व्युत्पत्ति निमित्त है 'गमन करना', किन्तु उसका प्रवृत्ति निमित्त है खुर, ककुद, पूँछ व गलकंबल युक्त पिण्ड। अत: बैठी हुई गाय को 'गो' कहने में कोई विरोध नहीं आता
क्योंकि उसमें 'गो' शब्द का प्रवृत्ति निमित्त घटित हो रहा है ॥१०४३ ।।
३. बादर क्षेत्र पुद्गल परावर्त—कोई एक जीव संसार में भ्रमण करते-करते आकाश के किसी एक प्रदेश में मरा, वही जीव पुन: आकाश के किसी दूसरे प्रदेश में मरा, फिर तीसरे में मरा, इस प्रकार
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