SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन-सारोद्धार १४५ अवसर्पिणी, बताना असंभव है। यह चक्र तो सतत गतिशील है। इसका कभी अन्त नहीं होता। यदि कहीं प्रारम्भ व अन्त होता तो प्रथम कौन है बताना शक्य था ॥१०३८ ।। १६२ द्वार: पुद्गल-परावर्त ओसप्पिणी अणंता पोग्गलपरियट्टओ मुणेयव्वो। तेऽणंता तीयद्धा अणागयद्धा अणंतगुणा ॥१०३९ ॥ पोग्गलपरियट्टो इह दव्वाइ-चउव्विहो मुणेयव्यो । थूलेयरभेएहिं जह होइ तहा निसामेह ॥१०४० ॥ ओरालविउव्वा-तेयकम्म-भासाण-पाण-मणएहिं । फासेवि सव्वपोग्गल मुक्का अह बायरपरट्टो ॥१०४१ ॥ अहव इमो दव्वाई ओरालविउव्वतेयकम्मेहिं । नीसेसदव्वगहणंमि बायरो होइ परियट्टो ॥१०४२ ॥ दव्वे सुहुमपरट्टो जाहे एगेण अह सरीरेणं । फासेवि सव्वपोग्गल अणुक्कमेणं नणु गणिज्जा ॥१०४३ ।। लोगागासपएसा जया मरंतेण एत्थ जीवेणं । पट्ठा कमक्कमेणं खेत्तपरट्टो भवे थूलो ॥१०४४ ॥ जीवो जइया एगे खेत्तपएसंमि अहिगए मरइ । पुणरवि तस्साणंतरि बीयपएसंमि जइ मरए ॥१०४५ ॥ एवं तरतमजोगेण सव्वखेत्तंमि जइ मओ होइ।। सुहुमो खेत्तपरट्टो अणुक्कमेणं नणु गणेज्जा ॥१०४६ ॥ ओसप्पिणीए समया जावइया ते य निययमरणेणं । पुट्ठा कमुक्कमेणं कालपरट्टो भवे थूलो ॥१०४७ ॥ . सुहुमो पुण ओसप्पिणी पढमे समयंमि जइ मओ होइ। पुणरवि तस्साणंतरबीए समयंमि जइ मरइ ॥१०४८ ॥ एवं तरतमजोएण सव्वसमएसु चेव एएसुं। जइ कुणइ पाणचायं अणुक्कमेणं नणु गणिज्जा ॥१०४९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy