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________________ द्वार १५४ १२६ उक्किट्ठठिई वरिसाण पंचगं तो अबीयत्तं ॥ ९९८ ॥ अयसी लट्टा कंगू कोडूसग सण वरट्ट सिद्धत्था। कोद्दव रालग मूलग बीयाणं कोट्ठयाईसु ॥ ९९९ ॥ निक्खित्ताणं एयाणुक्कोसठिईए सत्त वरिसाई। होइ जहन्नेण पुणो अंतमुहत्तं समग्गाणं ॥ १००० ॥ -गाथार्थधान्य का अबीजत्व—१. यव २. यवयव ३. गेंहू ४. शाली ५. व्रीहि-इन धान्यों को कोठी आदि में डालकर कोठी को बराबर ढंक कर ऊपर से लीपने के पश्चात् भीतर रखा हुआ धान्य तीन वर्ष तक सचित्त रहता है। तत्पश्चात् वह अबीज बन जाता है ।। ९९५-९६ ।। १. तिल २. मूंग ३. मसूर ४. त्रिपुट ५. उड़द ६. चौले ७. कुलत्थ ८. तूवर ९. काले चने १०. बाल आदि धान्यों को कोठी में ढंक कर उसे ऊपर से लीपकर लांछित एवं मुद्रित कर रखने से अधिक से अधिक पाँच वर्ष के पश्चात् अबीज बनते हैं।। ९९७-९८ ।। १. अयसी २. लट्ट ३. कंगू ४. कोटुसन्न ५.शण ६. बंटी ७. सरसों ८. कोद्रव ९. रालक और १०. मूलक के बीज को कोठी आदि में डालकर रखने से उत्कृष्टत: सात वर्ष पर्यन्त सचित्त रहते हैं। तत्पश्चात् अबीज बनते हैं। सभी धान्य जघन्य से अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् अबीज बन जाते हैं। ९९९-१०००॥ -विवेचन (i) गेहूँ (ii) यव (iii) शाली (डांगर) (iv) यवयव (यवविशेष) (v) व्रीहि (चावल) इन पाँच धान्यों को कोठार, कोठी, मटके आदि में डालकर, दरवाजे, मुंह आदि को गोबर इत्यादि से इस प्रकार बन्द कर दिया जाये कि भीतर वायु का प्रवेश लेशमात्र भी न हो तो ये धान्य तीन वर्ष के पश्चात् अचित्त बनते हैं। तदनन्तर इन्हें बोने पर भी ये नहीं उगते ॥९९५-९९६ ॥ (i) तिल (iv) चौला (vii) वाल (x) काले चने । (ii) मूंग (v) मसूर, अन्य मतानुसार चना (viii) तूअर (iii) उड़द (vi) मटर (ix) कुलत्थ (अनाज विशेष) पूर्वोक्त रीति से इन्हें रखा जाये तो पाँच वर्ष के पश्चात् ये 'अबीज' बनते हैं ॥९९७-९९८ ॥ (i) अलसी (iv) कोद्रवविशेष (vii) सरसों (x) मूले के बीज (ii) कुसुंभा (v) शण (धान्यविशेष) (viii) कोदवी (iii) कांगनी (पीले रंग के चावल) (vi) बंटी (ix) कंगू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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