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________________ प्रवचन-सारोद्धार १२५ हुआ प्रतिमाधारी गृहस्थ घर में गौचरी के लिये प्रवेश करते समय इस प्रकार बोले—“प्रतिमाधारी श्रमणोपासक को भिक्षा दो।" यदि कोई पूछे कि तुम कौन हो? तो कहे कि “मैं श्रमणोपासक (प्रतिमाधारी) हूँ।” इस प्रकार ग्यारहवीं प्रतिमा का आराधक-मास कल्पादि विधि के अनुसार ग्यारह मास तक साधु की तरह विहार करे। यह कालमान उत्कृष्ट है। जघन्य-प्रत्येक प्रतिमा का जघन्यकाल अन्तमुहूर्त (४८ मि.) है, यह काल मृत्यु के समय अथवा दीक्षा लेने से पूर्व प्रतिमा के अभ्यासी के लिये संभवित होता है अथवा नहीं। ममत्व का सम्पूर्ण विच्छेद न होने से प्रतिमाधारी स्वजनों को मिलने हेतु उनके गाँव जाता है, किन्तु रहता साधु की तरह है। उनके किसी भी कार्य में सहभागी नहीं बनता। जैसे साधु प्रासुक और एषणीय आहारादि लेते हैं, वैसे वह भी लेता है। स्नेहीजन स्नेहवश अकल्पनीय आहार पानी देने का आग्रह करे तो भी वह नहीं लेता। आवश्यक चूर्णि के मत से पीछे की ७ प्रतिमाओं के नाम इस प्रकार हैं :रात्रिभोजन त्याग रूप -५ वी प्रतिमा सचित्त आहार त्याग रूप -६ठी प्रतिमा दिन में ब्रह्मचारी और रात्रि में परिमाणकृत । -७वीं प्रतिमा दिन और रात ब्रह्मचर्य का पालन, स्नान, केश, रोम, नखादि की विभूषा के त्याग रूप -८वीं प्रतिमा स्वयं आरंभ न करने रूप -९वी प्रतिमा दूसरों से आरंभ न कराने रूप -१०वी प्रतिमा उद्दिष्ट भक्त-पान वर्जन, श्रमण भूत -११वीं प्रतिमा ॥९९३-९९४ ॥ १५४ द्वार: अबीजत्व जव जवजव गोहुम सालि वीहि धन्नाण कोट्ठयाईसुं । खिविऊणं पिहियाणं लित्ताणं मुद्दियाणं च ॥ ९९५ ॥ उक्कोसेणं ठिइ होइ तिन्नि वरिसाणि तयसु एएसिं। विद्धंसिज्जइ जोणी तत्तो जायइ अबीयत्तं ॥ ९९६ ॥ तिल मुग्ग मसूर कलाय मास चवलय कुलत्थ तुवरीणं । तह कसिणचणय वल्लाण कोट्ठयाईसु खिविऊणं ॥ ९९७ ॥ ओलित्ताणं पिहियाण लंछियाणं च मुद्दियाणं च। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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