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________________ द्वार १५३ १२४ ७. सचित्तवर्जक प्रतिमा - सात मास तक सचित्त अशन-पान-खादिम-स्वादिम का पूर्ण त्याग करने रूप सातवी प्रतिमा है ।।९८९ ॥ ८. आरंभ त्याग प्रतिमा - पृथ्वीकायादि छ: काय का स्वयं आरम्भ न करे। आजीविका के लिये दूसरों से आरंभ कराना पड़े तो करा सकते हैं पर हिंसादि पापों का तीव्र परिणाम नहीं होना चाहिए। प्रश्न-यद्यपि प्रतिमाधारी स्वयं आरंभ नहीं करता किन्तु दूसरों से कराता है अत: उससे हिंसा तो हो ही जाती है? उत्तर-आपकी बात सत्य है किंतु पहले वह स्वयं भी हिंसा करता था व दूसरों से भी करवाता था, इस प्रकार उभयजन्य हिंसा होती थी। पर अब स्वयं सावध व्यापार में प्रवृत्त न होने से स्वकृत हिंसा का त्यागी हो जाता है अत: आठवी प्रतिमा में इतना लाभ है। भयंकर रोग में थोड़ा भी स्वास्थ्य लाभ हो तो वह अपने हित के लिये ही होता है, वैसे थोड़ा भी आरम्भ त्याग आत्म-हित के लिये होता ९. प्रेष्यारंभ त्याग प्रतिमा १०. उद्दिष्ट भोजन वर्जन प्रतिमा - स्वयं तो पाप व्यापार रूप खेती आदि का काम सर्वथा न करे, किन्तु सेवक आदि से भी नहीं करावे। अल्प आरम्भ वाले कार्य का निषेध नहीं है जैसे किसी को आसन इत्यादि देना। नौ महीने तक कुटुम्ब का सारा कार्यभार पुत्र, भ्राता आदि को सौंपकर, धन-धान्यादि परिग्रह के प्रति यथाशक्य अनासक्ति रखते हुए आरम्भ करने व कराने के त्याग रूप नवमी प्रतिमा का पालन करे ॥९९० ॥ - इस प्रतिमा का वाहक प्रतिमाधारी श्रावक उसको उद्देश्य करके बनाया हुआ भोजन न ले। १०वी प्रतिमा के वाहक आराधक मस्तक का मुंडन (अस्त्रादि से) करवाते हैं। कुछ शिखा रखते हैं। इस प्रतिमा का आराधक सांसारिक कोई भी कार्य नहीं करता। सिर्फ इतनी सी छूट रहती है कि यदि जमीन आदि में गड़े धन के बारे में पारिवारिक जन पूछे तो जानता हो तो बताये कि अमुक जगह धन गड़ा हुआ है (अन्यथा आजीविका का अन्तराय होता है)। यदि नहीं जानता हो तो स्पष्ट कहे कि मैं नहीं जानता, बस, इसके सिवाय और कुछ भी गृह कार्य करना नहीं कल्पता ।।९९१-९९२ ॥ - हाथ से अथवा अस्त्रादि से मस्तक का मुंडन करे। साधु की तरह रजोहरण, पात्र आदि उपकरण रखे। इस प्रकार साधु की तरह समाचरण करता हुआ अर्थात् समिति-गुप्ति का पालन करता ११. श्रमणभूत प्रतिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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