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प्रवचन - सारोद्धार
३. सामायिक प्रतिमा
४. पौषध प्रतिमा
सावद्य-योग का त्याग एवं निरवद्ययोग का सेवन रूप सामायिक दोनों संध्याकाल में करना । (जिस दिन पौषध न हो उस दिन) । चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा इन पर्व - तिथियों में आहार, शरीर-सत्कार, अब्रह्मचर्य और व्यापार त्याग रूप पौषध विधि पूर्वक करना ।
पूर्वोक्त चारों ही प्रतिमा में बन्ध, वधादि १२ व्रत सम्बन्धी ६० अतिचारों का प्रयत्न- पूर्वक त्याग करना चाहिये ॥ ९८३-९८५ ॥ ५. कायोत्सर्ग प्रतिमा
अन्य दिनों में (अपर्व दिनों में) काउस्सग्ग प्रतिमा वाले की चर्या कैसी हो ?
• स्नानादि परिवर्जक
• दिन में प्रकाशयुक्त स्थान में भोजन करने वाला
• रात्रि में भोजन का त्यागी (प्रतिमा वहन से पूर्व रात्रिभोजन का नियम न हो तो) • दिन में ब्रह्मचारी
कायोत्सर्ग में क्या चिन्तन करे ?
पूर्वोक्त ४ प्रतिमायुक्त महान सत्त्वशील आत्मा रात्रि में चौराहे पर अथवा जीर्ण मकान आदि में कायोत्सर्ग ध्यान में खड़ा रहे । यदि उपसर्ग हो तो सहन करे। इन प्रतिमाओं को धारण करने वाला प्रतिमा-कल्प का पूर्णज्ञाता व प्रवीण होना चाहिये क्योंकि अज्ञानी आत्मा सभी कार्यों के लिये अयोग्य माना गया है तो आराधना विशेष के लिये तो कहना ही क्या है ? यह प्रतिमा पौषध दिन (अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा) जाती है। प्रतिमाधारी सम्पूर्ण रात्रि कायोत्सर्ग में रहता है ।
वहन की
• रात्रि में परिमाणकृत ब्रह्मचारी (स्त्रियों का अथवा स्त्री सम्बन्धी भोगों का परिमाण करने वाला) • मुकुलिबद्ध = बिना लांघ की धोती पहिनने वाला अर्थात् लुंगी की तरह धोती पहनने
वाला ।
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(१) त्रिलोक पूज्य, वीतराग परमात्मा का ध्यान करे ।
(२) अपने काम-क्रोधादि दोषों के प्रतिपक्षी ब्रह्मचर्य - क्षमा इत्यादि महान् गुणों का चिंतन करे । यह प्रतिमा पाँच मास की है ।। ९८६ ९८७ ॥
६. ब्रह्मचर्य प्रतिमा
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काम - कथा, विभूषा (स्नान - विलेपन - धूपन आदि) आदि का त्याग करे (योग्य विभूषा करे), स्त्री के साथ प्रणय कथा न करे । पूर्व - प्रतिमा में दिन में अब्रह्म का त्याग था किन्तु इस प्रतिमा में रात्रि को भी त्याग समझना । इसीलिये इस प्रतिमा में चित्त को चंचल करने वाली काम-कथा आदि का त्याग बताया गया । यह प्रतिमा ६ मास की है ॥ ९८८ ॥
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