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प्रवचन - सारोद्धार
में चतुर्दशी, अष्टमी आदि पर्व तिथिओं में पूर्णरूपेण चतुर्विध पौषधधारी होता है तथा प्रतिमाराधनकाल में बंध, वधादि अतिचारों का सर्वथा त्याग करता है ।। ९८३-९८४ ।।
सम्यक्त्व, अणुव्रत, गुणव्रत एवं शिक्षाव्रत का पालन करने वाला, स्थिर, तथा ज्ञानी आत्मा अष्टमी - चतुर्दशी को रात में प्रतिमावहन करे ।। ९८५ ।।
अन्य दिवसों में स्नानरहित, दिन में भोजन करने वाला, लुंगी की तरह धोती पहनने वाला, दिन में ब्रह्मचारी एवं रात्रि में परिमाणकृत होता है ।। ९८६ ॥
कायोत्सर्ग प्रतिमाधारी आत्मा त्रैलोक्यपूज्य, जितकषायी ऐसे जिनेश्वर परमात्मा का ध्यान करता है । अथवा अपने क्रोधादि दोषों के दुश्मनरूप क्षमादि गुणों का पाँच महीना पर्यंत ध्यान करता है ।। ९८७ ।।
शृंगारकथा, विभूषा का उत्कर्ष, स्त्रीकथा तथा सभी प्रकार के अब्रह्म का छः मास तक छट्ठी प्रतिमा को धारण करने वाला त्याग करता है ।। ९८८ ।।
सात मास परिमाण वाली सातवीं प्रतिमा में प्रतिमाधारक सचित्त आहार का त्यागी होता है। जो विधि निम्न प्रतिमाओं की है वह ऊपर की प्रतिमाओं में भी करनी चाहिये ।। ९८९ ।।
आठवीं प्रतिमा में प्रतिमाधारी आठ मास तक आरंभ का त्यागी होता है। नौवीं प्रतिमा में नौ मास तक प्रेष्यारंभ का त्याग करता है ।। ९९० ।।
प्रतिमाधारी दसवीं प्रतिमा में दस मास तक उद्दिष्ट भोजन का त्यागी होता है। शिर का मुंडन करता है अथवा कोई चोटी भी रखता है । भूमिगत धन के विषय में यदि पुत्रादि पूछे तो जानता हो तो अवश्य बताता है। न जानता हो तो कहे कि मैं नहीं जानता ।। ९९१-९९२ ।।
उत्कृष्टतः उस्तरे से मुंडन करके अथवा लोच करके ग्यारह मास पर्यंत रजोहरण और पात्रग्रहण कर साधु की तरह विचरण करता है ।। ९९३ ॥
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ममत्व का नाश न होने के कारण प्रतिमाधारी, स्वजनों को मिलने हेतु गाँव आदि में जाता है । वहाँ भी साधु की तरह ही प्रासुक आहार- पानी ग्रहण करता है ।। ९९४ ।।
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-विवेचन
(१)
(२)
(३)
(४)
(4)
(६)
(७)
(८)
दर्शन..
व्रत..........अणुव्रत
सामायिक...
पौषध....
प्रतिमा..
अब्रह्मवर्जन... .. अब्रह्मचर्य का त्याग करना । सचित्तवर्जन......... सचेतन द्रव्य का त्याग करना ।
आरंभ वर्जन... . स्वयं खेती आदि आरंभ नहीं करना ।
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सम्यक्त्व
.. सावद्य का त्याग और निरवद्य का सेवन
..अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व दिन में किया जाने वाला अनुष्ठान विशेष ...कायोत्सर्ग (विधिपूर्वक पाँचों प्रतिमाओं को ग्रहण करना)
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