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________________ १२० द्वार १५३ असिणाण वियडभोई मउलियडो दिवसबंभयारी य। रत्तिं परिमाणकडो पडिमावज्जेसु दिवसेसुं ॥ ९८६ ॥ झायइ पडिमाए ठिओ तिलोयपुज्जे जिणे जियकसाए। नियदोसपच्चणीयं अन्नं वा पंच जा मासा ॥ ९८७ ॥ सिंगारकहविभसक्करिसं इत्थीकहं च वज्जितो। वज्जइ अबंभमेगंतओ य छट्ठीइ छम्मासे ॥ ९८८ ॥ सत्तम्मि सत्त उ मासे नवि आहारइ सच्चित्तमाहारं । जं जं हेट्ठिल्लाणं तं तं चरिमाण सव्वंपि ॥ ९८९ ॥ आरंभसयंकरणं अट्ठमिया अट्ठ मास वज्जेइ। नवमा नव मासे पुण पेसारंभेऽवि वज्जेइ ॥ ९९० ।। दसमा दस मासे पुण उद्दिट्ठकयंपि भत्त नवि भुंजे । सो होइ उ छुरमुंडो सिहलिं वा धारए कोई ॥ ९९१ ॥ जं निहियमत्थजायं पुच्छंत सुयाण नवरि सो तत्थ । जइ जाणइ तो साहइ अह नवि तो बेइ नवि याणे ॥ ९९२ ॥ खुरमुंडो लोएण व रयहरणं पडिग्गहं च गिण्हित्ता। समणो हूओ विहरइ मासा एक्कारसुक्कोसं ॥ ९९३ ॥ ममकारेऽवोच्छिन्ने वच्चइ सन्नायपल्लि दटुं जे । तत्थवि साहुव्व जहा गिण्हइ फासुं तु आहारं ॥ ९९४ ॥ -गाथार्थश्रावक-प्रतिमा– १. दर्शन २. व्रत ३. सामायिक ४. पौषध ५. प्रतिमा ६. अब्रह्मचर्य ७. सचित्तत्याग ८. आरंभत्याग ९. प्रेष्यत्याग १०. उद्दिष्ट त्याग तथा ११. श्रमणभूत-ये ग्यारह श्रावक प्रतिमायें हैं। ९८० ।। जिस प्रतिमा का क्रमांक जितना है उस प्रतिमा का कालमान उतने ही मास का है। उत्तरोत्तर प्रतिमाओं में पूर्व प्रतिमाओं से सम्बन्धित सभी क्रियायें व प्रस्तुत प्रतिमा सम्बन्धी क्रियायें दोनों ही करनी पड़ती हैं ।। ९८१ ।। प्रशमादि गुणों से विशिष्ट, कुग्रह-शंका आदि शल्यों से रहित होने से निर्दोष ऐसे सम्यग् दर्शन का पालन ही प्रथम दर्शन प्रतिमा है।। ९८२ ।। प्रतिमाधारी श्रावक दूसरी प्रतिमा में अणुव्रती, तीसरी प्रतिमा में सामायिक कर्ता, चतुर्थ प्रतिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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