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प्रवचन - सारोद्धार
(iv) सूक्ष्मपराय
• विशुद्धयमान - क्षपक श्रेणी व उपशम श्रेणि में चढ़ने वाले का चारित्र । • संक्लिश्यमान — उपशमश्रेणि से गिरने वाले का चारित्र |
अथाख्यात
संपराय = संसार भ्रमण कराने वाला कषाय का उदय । सूक्ष्म = लोभ का सूक्ष्म अंश । अर्थात् जिस चारित्र में मात्र लोभांश का उदय हो वह सूक्ष्म- संपराय चारित्र है । उसके दो भेद हैं---
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छाद्मस्थिक—उपशान्तमोह व क्षीणमोह गुणस्थानवर्ती आत्मा का चारित्र । • कैवलिक-सयोगी व अयोगी केवली का चारित्र ॥ ९७९ ॥
१५३ द्वार :
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अथ = यथार्थ, वास्तविक । आङ् उपसर्ग अभिविधि के अर्थ में है । ख्यातं = कहा गया अर्थात् जैसा बताया गया है वैसा चारित्र। अकषायचारित्र | इसका दूसरा नाम यथाख्यात भी है यथा = जीवलोक में चारित्र का जैसा स्वरूप प्रसिद्ध है । ख्यातं = वैसा चारित्र । अर्थात् जीवलोक में कषाय का अभाव भी चारित्र कहा गया है, वैसा चारित्र यथाख्यात है । इसके दो भेद हैं। छास्थिक व कैवलिक ।
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श्राद्ध-प्रतिमा
दंसण वय सामाइय पोसह पडिमा अबंभ सच्चित्ते । आरंभ पेस उद्दिट्ठ वज्जए समणभूए य ॥ ९८० ॥ जस्संखा जा पडिमा तस्संखा तीए हुंति मासावि ।
तीसुविकज्जाउ तासु पुव्वुत्तकिरिया उ ॥ ९८१ ॥ पसमाइगुणविसि कुग्गहसंकाइसल्लपरिहीणं । सम्मदंसणमणहं दंसणपडिमा हवइ पढमा ॥ ९८२ ॥ बीयाणुव्वधारी सामाइकडो य होइ तइयाए । होइ चउत्थी चउद्दसीअट्ठमिमाईसु दिवसेसु ॥ ९८३ ॥ पोसह चउव्विहंपि य पडिपुण्णं सम्म सो उ अणुपाले । बंधाई अइयारे पयत्तओ वज्जईमासु ॥ ९८४ ॥ सम्ममणुव्वय-गुणवयसिक्खावयवं थिरो य नाणी य । अट्ठमीचउद्दसीसुं पडिमं ठाएगराईयं ॥ ९८५ ॥
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