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________________ प्रवचन-सारोद्धार ११७ प्रश्न-कालद्रव्य के साथ अस्तिकाय का प्रयोग क्यों नहीं होता? उत्तर–अनेक प्रदेश वाले द्रव्य के लिये ही 'अस्तिकाय' का प्रयोग होता है। काल एक समय रूप होने से ‘अस्तिकाय' नहीं कहलाता। अतीत व अनागत समय क्रमश: नष्ट व अनुत्पन्न होने से प्रज्ञापक पुरुष के द्वारा की जाने वाली प्ररूपणा की अपेक्षा वर्तमान समय रूप काल ही यथार्थ है। प्रश्न-यदि काल एक समयरूप है तो आवलिका, मुहूर्त, दिवस आदि का व्यवहार ही समाप्त हो जायेगा? क्योंकि आवलिका आदि असंख्येय समय प्रमाण होने से अस्तिकाय रूप होंगे। उत्तर-स्थिर, स्थूल व त्रैकालिक वस्तु को स्वीकार करने वाले व्यवहारनय की अपेक्षा से आवलिका, मुहूर्त आदि की प्ररूपणा होती है। निश्चयनय के अनुसार तो आवलिका आदि यथार्थ कालद्रव्य नहीं हैं ।।९७६ ॥ ५. व्रत - व्रत = शास्त्रविहित नियम । व्रत पाँच हैं । अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह। ५ समिति - ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदान-निक्षेप समिति व परिष्ठापना समिति । ये पाँच समिति भी व्रत स्वरूप ही हैं। समिति का विस्तृत स्वरूप ६६वें और ६७वे द्वार में कहा गया ५ गति -- नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति, देवगति व सिद्धगति । गति = कर्मरूपी रस्सी से आकृष्ट प्राणियों के द्वारा जहाँ जाया जाता है वह गति है। • नारक जीवों की गति नरक गति है। • एकेन्द्रिय आदि तिर्यंचों की गति तिर्यंचगति है। • मनुष्यों की गति मनुष्यगति है। • देवों की गति देवगति है। जो कर्मोदय जन्य नहीं है परन्तु जहाँ जीव कर्मरहित हो गमन करता है वह 'सिद्धिगति' है। गमन करने रूप साम्यता के कारण ही इसे 'गति' रूप माना गया है ॥९७७-९७८ ।। ५ज्ञान - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्यवज्ञान व केवलज्ञान । इनका स्वरूप आगे कहा जायेगा। ५ चारित्र - जिसके द्वारा भवसागर पार किया जाये वह चारित्र है। वे पाँच हैं। एक पद का ग्रहण पूरे पदसमुदाय का बोध कराता है अत: यहाँ पद के एक देश का ग्रहण होने पर भी सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय व यथाख्यात चारित्र का ग्रहण होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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