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________________ द्वार १५२ ११० ३४॥ पूर्वोक्त पदार्थों का विवरण इस प्रकार है-भूत, भविष्य और वर्तमान-ये तीन काल हैं। छ: द्रव्य निम्न प्रकार से समझना चाहिये । ९७२ ।। १. धर्मास्तिकाय २. अधर्मास्तिकाय ३. आकाशास्तिकाय ४. काल ५. पुद्गलास्तिकाय तथा ६. जीवास्तिकाय रूप छः द्रव्य हैं ।। ९६३ ।। १. जीव २. अजीव ३. पुण्य ४. पाप ५. आस्रव ६. संवर ७. निर्जरा ८. बंध और ९. मोक्ष जिनशासन में-ये नवपद हैं। ९७४ ।। १. एकेन्द्रिय २. द्वीन्द्रिय ३. त्रीन्द्रिय ४. चतुरिन्द्रिय ५. पंचेन्द्रिय एवं अनीन्द्रिय रूप-छ: जीव हैं। १. पृथ्वी २. जल ३. अग्नि ४. वायु ५. वनस्पति एवं ६. त्रस-ये छ: काय हैं ।। ९७५ ॥ १. कृष्ण २ नील ३. कापोत ४. तेज ५. पद्म और ६. शुक्ल-ये छ: लेश्यायें हैं। कालरहित पूर्वोक्त छ: द्रव्य ही अस्तिकाय रूप हैं ।। ९७६ ॥ १. हिंसा २. असत्य ३. स्तेय ४. मैथुन एवं ५. परिग्रह इनके त्याग रूप-ये पाँच व्रत हैं। पाँच समितियाँ इस प्रकार कहूँगा ।। ९७७ ।। १. ईर्यासमिति २. भाषासमिति ३. एषणासमिति ४. ग्रहणसमिति ५. परिष्ठापना समिति-ये पाँच समितियाँ हैं। १. नरकगति २. तिर्यंचगति ३. मनुष्यगति ४. देवगति एवं ५ सिद्धगति-ये पाँच गतियाँ हैं ।। ९७८ ॥ १. मतिज्ञान २. श्रुतज्ञान ३. अवधिज्ञान ४. मन:पर्यवज्ञान एवं ५. केवलज्ञान-ये पंचविध ज्ञान हैं। १. सामायिक २. छेदोपस्थापनीय ३. परिहार विशुद्धि ४. सूक्ष्मसंपराय और ५. यथाख्यात-ये पाँच चारित्र हैं। ९७९ ।। -विवेचनइसमें तीन काल, षद्रव्य, जीवादि नवतत्त्व/नवपद, व्रत आदि मोक्ष के कारणभूत पदार्थों का यथार्थ स्वरूप बताया जायेगा जैसा कि त्रिलोकपूज्य, सहजात, कर्मक्षयजन्य तथा देवताओं से विरचित चौंतीस अतिशय रूप परम ऐश्वर्य से सम्पन्न तीर्थंकर परमात्मा ने बताया है। इन पदार्थों का यथार्थ- बोध मोक्ष का कारण है अत: विवेक बुद्धिसंपन्न जो आत्मा इन पदार्थों के यथार्थस्वरूप के प्रति श्रद्धा रखते हैं, यथायोग्य उन्हें आत्मसात् करते हैं वे निश्चय से सम्यक् दृष्टि हैं। अब संक्षेप में उन पदार्थों का स्वरूप क्रमश: बताते हैं ॥९७१ ॥ ३ काल(i) अतीत - जिस काल की वर्तमान पर्याय बीत चुकी हो अर्थात् बीता काल अतीतकाल है। (ii) वर्तमान - जो चल रहा है। सर्वसूक्ष्म, निरंश समय प्रमाण वर्तमान काल (iii) भावी - जो काल अभी वर्तमान पर्याय को प्राप्त नहीं हुआ पर होगा वह भावी काल है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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