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________________ प्रवचन-सारोद्धार १०९ १५२ द्वार: त्रैकाल्यवृत्त-विवरण 3:3398503886-22260 208808086880885334 salsasse200880868638 त्रैकाल्यं द्रव्यषट्कं नवपदसहितं जीवषट्कायलेश्या: पञ्चान्ये चास्तिकाया व्रत-समिति-गति-ज्ञान-चारित्र-भेदाः । इत्येते मोक्षमूलं त्रिभुवनमहितैः प्रोक्तमर्हद्भिरीशैः, प्रत्येति श्रद्दधाति स्पृशति च मतिमान् य: स वै शुद्धदृष्टिः ॥ ९७१ ॥ एयस्स विवरणमिणं तिक्कालमईयवट्टमाणेहिं । होइ भविस्सजुएहिं दव्वच्छक्कं पुणो एयं ॥ ९७२ ॥ धम्मत्थिकायदव्वं दव्वमहम्मत्थिकायनामं च । आगास-काल-पोग्गल जीवदव्वस्सरूवं च ॥ ९७३ ॥ जीवाजीवा पुन्नं पावाऽऽसव-संवरो य निज्जरणा। बंधो मोक्खो य इमाइं नवपयाइं जिणमयम्मि ॥ ९७४ ॥ जीवं छक्कं इग बि ति चउ पणिंदिय अणिंदियसरूवं । छक्काया पुढवि जलानल वाउ वणस्सइ तसेहिं ॥ ९७५ ।। छल्लेसाओ कण्हा नीला काऊ य तेउ पउम सिया । कालविहीणं दव्वच्छक्कं इह अस्थिकायाओ ॥ ९७६ ॥ पाणिवह मुसावाए अदत्त मेहुण परिग्गहेहि इहं । पंच वयाइं भणियाइं पंच समिईओ साहेमि ॥ ९७७ ॥ इरिया भासा एसण गहण परिट्ठवण नामिया ताओ। पंच गईओ नारय तिर नर सुर सिद्ध नामाओ ॥ ९७८ ॥ नाणाइं पंच मइ सुय ओहि मण केवलेहि भणियाइं। सामइय छेय परिहार सुहम अहक्खाय चरणाइं॥ ९७९ ॥ -गाथार्थत्रिकाल द्रव्यषट्क–तीन काल, छः द्रव्य, नवतत्त्व, छ: जीव, छ: काय, छ: लेश्या, पाँच अस्तिकाय, पाँच व्रत, पाँच समिति, पाँच गति, पाँच ज्ञान, पाँच चारित्र इन्हें त्रिभुवन पूज्य अरिहंत भगवन्तों ने मोक्ष का मूल कहा है। जो बुद्धिमान आत्मा इन्हें जानता है, मानता है, इनका आदर करता है, और इनकी स्पर्शना करता है वह विशुद्धदृष्टि वाला है ।। ९७१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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