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प्रवचन-सारोद्धार
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प्रश्न-योनि और कुल में क्या अन्तर है?
उत्तर-जीवों का उत्पत्ति स्थान 'योनि' कहलाती है। गोबर आदि बिच्छु का उत्पत्ति स्थान होने से उसकी योनि है। समान योनि वाले जीवों की अनेक जातियाँ पृथक्-पृथक् कुल हैं। जैसे गोबर में कृमि, कीट, बिच्छू आदि अनेक जाति वाले जीव उत्पन्न होते हैं, उनकी योनि एक होने पर भी कुल अलग-अलग हैं। कृमिकुल, कीटकुल, बिच्छूकुल आदि । अथवा एक योनि में उत्पन्न होने वाले सजातीय जीवों में भी जिनका वर्णादि समान होता है वे परस्पर एक कुल के माने जाते हैं। जैसे गोबर में उत्पन्न होने वाले लाल बिच्छुओं का एक कुल माना जाता है। पीतवर्ण वालों का एक कुल माना जाता है। इस प्रकार वर्णादि की भिन्नता से सजातीय जीवों के भी कुल अलग-अलग हो जाते हैं।
प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार योनि तीन प्रकार की है(i) शीतयोनि (ii) उष्णयोनि (iii) मिश्रयोनि । इनमें से नारकों की शीत और उष्णयोनि है। (क) प्रथम, द्वितीय और तृतीय नरक में उष्णवेदना होने से उनकी ‘शीतयोनि' है । (ख) चतुर्थ नरक के उष्णवेदना वाले नरकावास की 'शीतयोनि' है। (ग) चतुर्थ नरक के शीतवेदना वाले नरकावास की ‘उष्णयोनि' है। (घ) पञ्चम नरक के शीतवेदना वाले नरकावास की ‘उष्णयोनि' है । (ङ) पञ्चम नरक के उष्णवेदना वाले नरकावास की 'शीतयोनि' है । (च) षष्ठ और सप्तम नरक के शीतवेदना वाले नरकावास की 'उष्णयोनि' है। • शीतयोनि वाले नारकों को उष्णवेदना और उष्णयोनि वालों को शीतवेदना अत्यंत कष्टप्रद
होती है। पापकर्म की अधिकता के कारण, नरक के जीवों को द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आदि सभी वस्तुयें प्रतिकूल ही मिलती हैं ताकि उन्हें वेदना अधिक हो, यही कारण है कि योनि
भी उन्हें प्रतिकूल ही मिलती है। (छ) देवता, गर्भज मनुष्य व गर्भज तिर्यंच की ‘मिश्रयोनि' है।
(ज) पृथ्वी, पानी, वायु, वनस्पति, विकलेन्द्रिय, संमूर्छिम तिर्यंच व संमूर्छिम मनुष्य की शीत, उष्ण व मिश्र तीनों योनियाँ हैं।
(झ) तेउकाय की उष्णयोनि है। अथवा (i) सचित्त (iii) अचित्त (iii) मिश्र के भेद से योनि तीन प्रकार की है
१. देवता व नारकी की अचित्तयोनि है। कारण उनका उत्पत्ति स्थान अन्य जीवों से अपरिगृहीत (जीवरहित) होता है। यद्यपि सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव चौदह राजुलोक में व्याप्त होने से देवता व नारकों के उपपात क्षेत्र में भी हैं ही तथापि वे अपने उपपात क्षेत्र के पुद्गलों के साथ अनुविद्ध नहीं रहते, इसलिये देवता व नारकी की योनि अचित्त कहलाती है।
२. एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, संमूर्छिम तिर्यंच व संमूर्छिम मनुष्य की तीनों प्रकार की योनि हैं।
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