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________________ प्रवचन-सारोद्धार १०५ - - --- -विवेचनकुल = सजातीय जीवों का समूह। कोटि = जाति विशेष १. पृथ्विकाय १२ लाख कुलकोटि २. अप् काय ७ लाख कुलकोटि ३. तेउकाय ३ लाख कुलकोटि ४. वायुकाय ७ लाख कुलकोटि ५. वनस्पतिकाय २८ लाख कुलकोटि ६. द्वीन्द्रिय ७ लाख कुलकोटि ७. त्रीन्द्रिय ८ लाख कुलकोटि ८. चतुरिन्द्रिय ९ लाख कुलकोटि ९. जलचर १२- लाख कुलकोटि १०. खेचर १२ लाख कुलकोटि ११. चतुष्पद १० लाख कुलकोटि १२. भुजपरिसर्प = ९ लाख कुलकोटि १३. उर:परिसर्प १० लाख कुलकोटि १४. देवों की (चार) निकाय २६ लाख कुलकोटि १५. नारक = २५ लाख कुलकोटि १६. मनुष्य = १२ लाख कुलकोटि कुल मिलाकर सर्व जीवों की एक करोड़ सत्ताणु लाख पचास हजार कुल कोटि होती हैं ।। ९६३-९६७ ॥ १५१ द्वार: जीव-योनि पुढविदगअगणिमारुय एक्केक्के सत्त जोणिलक्खाओ। वणपत्ते य अणंते दस चउदस जोणिलक्खाओ ॥ ९६८ ॥ विगलिंदिएसु दो दो चउरो चउरो य नारयसुरेसुं । तिरिएसु होति चउरो चउदस लक्खा य मणुएसु ॥ ९६९ ॥ समवन्नाइसमेया बहवोऽवि हु जोणिलक्खभेयाओ। सामन्ना घिप्पंतिह एक्कगजोणीइ गहणेणं ॥ ९७० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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